गाथा : दानवीर कर्ण की (आधार छंद : आल्हा) Gatha Daanveer Karn Ki (Aalha Chhand) दानवीर , कुंती का बेटा, कर्ण नाम जिसकी पहचान कथा सुनाऊँ आज उसी की , श्रोताओ तुम देना ध्यान शूरसेन राजा का संगी, कुन्तिभोज था जिनका नाम कोई … Read more »
गाथा : दानवीर कर्ण की (आधार छंद : आल्हा) Gatha Daanveer Karn Ki (Aalha Chhand) दानवीर , कुंती का बेटा, कर्ण नाम जिसकी पहचान कथा सुनाऊँ आज उसी की , श्रोताओ तुम देना ध्यान शूरसेन राजा का संगी, कुन्तिभोज था जिनका नाम कोई … Read more »
दिग्पाल छन्द : Digpal Chhand यह मात्रिक छन्द है। यह २४ मात्रिक छन्द है । चार चरण, १२/१२ मात्रा पर यति, चरणान्त गुरु दो - दो पंक्ति समतुकान्त, इस छन्द की मापनी निम्न है- २२१,२१२२,२२१,२१२२ Example : उदाहरण Digpal Chhand Ka Vidhan Or Ud… Read more »
कनक मंजरी छन्द कनक-मंजरी छन्द विधान : यह वार्णिक छन्द है। गुरु का अर्थ गुरु, लघु का अर्थ लघु [ चार लघु + ६ भगण (२११)+ १ गुरु ] = २३ वर्ण , चार चरण, सभी समतुकान्त [ मापनी ११११,२११,२११,२११, २११,२११,२११,२ ] उदाहरण : अभी उपलब्ध नहीं .......... … Read more »
शंकर छंद [ Shanker Chhand ] शंकर छंद विधान : 16/10 अंत मे गुरु लघु क्रमशः दो - दो पंक्तियाँ समतुकांत दीन सुदामा की पुकार को, सुनो राधेश्याम आठ पहर जिसके अधरों पे, कृष्ण रहता नाम पाँच द्वार से भीख माँगकर, पूर्ण करता धर्म कैसा ये प्… Read more »
छन्द : पञ्चचामर विधान- 【 121 212 121 212 121 2】 चार चरण, क्रमशः दो-दो चरण समतुकांत --------------------------- उठो ! बढ़ो, रुको नहीं, करो, मरो, डरो नहीं बिना करे तरे नहीं, बिना करे नहीं कहीं पुकारती तुम्हे धरा, दिखा शरीर शक्ति को … Read more »
छंद - बिहारी छंद [ Bihari Chhand ] विधान - इसके प्रत्येक चरण में 14+8=22 मात्राएँ होती हैं , 14,8 मात्रा पर यति होती है तथा 5,6,11,12,17,18 वीं मात्रा लघु 1 होती है । एकाक्ष, महाकांत, महादेव, भगाली हे ! नाथ महाकाल गुणोकीर्ति निराली मैं मूर्ख … Read more »
छंद : कुण्डलियाँ Chhand :Kundaliyan (1) छंद रचो ऐसे सभी, पढ़त सुनत आनंद हिंदी का उत्कर्ष हैं, हिंदी वाले बंध हिंदी वाले बंध, शिल्प जिनका है रोचक गति, यति, लय हैं अंग, पढ़े लेखक या पाठक … Read more »
उत्कर्ष दोहावली [UTKARSH DOHAWALI) दोहा छंद विधान : तेरह ग्यारह मात्रा भार के चार चरण प्रत्येक ग्यारहवीं मात्रा वाला वर्ण लघु , समचरण तुकांत राधेश्याम कृपा करो, काटो भव के फंद तबहि मजा ब्रज बास कौ, और मिले आंनद गिरिधर तेरे ही … Read more »
उत्कर्ष दोहावली [UTKARSH DOHAWALI] पेड़ हुये कंक्रीट के, उजड़े वन उद्यान सन्नाटा अब व्योम में, नहीं मधुर खग गान कण कण में वह व्याप्त है, हर कण उसका जान खोल नयन “उत्कर्ष” फिर, कर उसकी पहचान जन्म सफल करलो सभी, कर… Read more »
उत्कर्ष कवितावली का संचालन कवि / लेखक नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष द्वारा किया जा रहा है। नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष मूल रूप से राजस्थान के भरतपुर वैर तहसील के गांव गोठरा के रहने वाले हैं।
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