विधा : मनहरण कवित छंद झूठ बोल छल रहे,झूठ से ही चल रहे, झूठ की इस झूठ को,दिल से निकालिए । झूठे रिश्ते झूठा जग,झूठन ही यहाँ सग, झूठे इस प्रपंच में,न खुद को डालिए । भरी यहाँ मोह माया,संभल न मन पाया, भ्रम से निकाल अब,मन को संभालिए । तारना है खुद को तो नेक राह … Read more »
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