विधा : मनहरण कवित छंद
झूठ बोल छल रहे,झूठ से ही चल रहे,
झूठ की इस झूठ को,दिल से निकालिए ।
झूठे रिश्ते झूठा जग,झूठन ही यहाँ सग,
झूठे इस प्रपंच में,न खुद को डालिए ।
भरी यहाँ मोह माया,संभल न मन पाया,
भ्रम से निकाल अब,मन को संभालिए ।
तारना है खुद को तो नेक राह चल फिर,
प्रेम गीत गा गा अब,मन सच पालिए ।।
✍नवीन श्रोत्रिय "उत्कर्ष"
श्रोत्रिय निवास बयाना(राज)