उत्कर्ष दोहे
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देख मुसीबत जप रहे,राम    नाम  अविराम ।
पहले ते  जपते अगर,तो डर का क्या काम ।।

राम  नाम  ही  प्रीत  है,राम      नाम वैराग ।
राम किरण है भोर की,रे मानस मन जाग ।।

नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष”