मेरी जिंदगी मझदार में है , अब कैसे पार उतारू .... सोचता पल पल यही में , कैसे खुद को निकालूँ .... वक़्त भी कम है पड़ा अब , कौन वो जिसे पुकारू .... मेरी जिंदगी मझदार में ........... २ यहाँ वहां सब अपने लगते , झूठा मन… Read more »
मेरी जिंदगी मझदार में है , अब कैसे पार उतारू .... सोचता पल पल यही में , कैसे खुद को निकालूँ .... वक़्त भी कम है पड़ा अब , कौन वो जिसे पुकारू .... मेरी जिंदगी मझदार में ........... २ यहाँ वहां सब अपने लगते , झूठा मन… Read more »
===================== दो अक्टूबर उन्नीस की , थी चौथी जब साल । शारद घर पैदा हुये , वीर बहादुर , लाल ।। ===================== शहर उत्तर प्रदेश में , जनपद मुगल सराय । तात शारदा , मात वो … Read more »
सार छंद सार छंद विधान : कुल 28 मात्रा, 16/12 पर यति, अंत में दो गुरु या 22, कुल चार चरण, [ क्रमागत दो - दो चरण तुकांत ] [1] मोह पाश मे फँसकर मैंने , सारो जन्म गवायो मिलो नही संतोष दिनहु में , सोवत चैन … Read more »
दो अक्टूबर को हुए , लिये अनोखा काम । गांधी लाल बहाद्दुर , उन दोनों के नाम ।। ===================== अठारह सौ उनहत्तर , वर्ष समझ यह खास । दो अक्टूबर को हुये , पैदा मोहनदास ।। ===================== क्वार मास उन्नीस में… Read more »
छंद : कुण्डलिया Kundaliyan Chhand (1) अज्ञानी तेरे बिना, ज्यो जल बिन हो मीन कृपा करो माँ शारदे, विनती करे नवीन विनती करे नवीन, सूझ कब तुम बिन माता दो मेधा का दान, मात मेधा की दाता जग करता गुणगान, मात तुम आदि भवा… Read more »
मत्तग्यन्द सवैया चोर बसे चहुँ ओर बसे,पर नाम करें रचना कर चोरी । सूरत से वह साधक है,पहचान परे नहि सूरत भोरी । बात बने लिखते वह तो,मति मारि गयी बिनकीउ निगोरी । कोशिश ते तर जामत है,मति कोउ उन्हें यह दे फिर थोरी । नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष… Read more »
मत्तग्यन्द सवैया -------------------- (1) चाँद समान लगे मुखड़ा,तन रंग लगे समझो वह सोना रूप लिये वह रूपवती,कर डारि गयी हमपे फिर टोना स्वप्न बुने हमने बहुतै,हर स्वप्न लगे तब मित्र सलोना बाद नही अब टेम उसे,यह प्यार रहा बन एक ख… Read more »
देव दैत्य स्तुति करें,कोउ न पायो पार नमन करूँ कमलापते,तुम जीवन के सार ------------------ छंद : चौपाइयां Vidhan : 10-8-12=30 ------------------ हे केशव रसिया,सब मन बसिया,सुन लो अर्ज हमारी विपदा ने घेरा,डाला डेरा,तुम बिन जाय न … Read more »
बिना तेरे रहे हम यार हमको था गवारा कब । किया था प्रेम तुमसे यार पर तुमने निहारा कब । जुडी सांसे फकत तुमसे,तुम्ही इक आरजू मेरी । चले आते सनम फिर भी,मगर तुमने पुकारा कब । नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष” श्रोत्रिय निवास बयाना + 91 84 4008-4006 Read more »
Mehnat Ka fal Utkarsh dohawali Mattgyandy Savaiya Utkarsh ghanakshri Read more »
राज-ऐ-दिल -------------------- मोहब्बत है सनम तुमसे, खुले दिल आज कहते है । छुपाया था जो' वर्षो से, सुनो ! वो राज कहते है । नही जीना तुम्हारे बिन, तुम्ही हो जिंदगी मेरी । रही दिल में सदा से तु… Read more »
उत्कर्ष कवितावली का संचालन कवि / लेखक नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष द्वारा किया जा रहा है। नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष मूल रूप से राजस्थान के भरतपुर वैर तहसील के गांव गोठरा के रहने वाले हैं।
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