मत्तग्यन्द सवैया
चोर  बसे  चहुँ ओर  बसे,पर  नाम  करें  रचना  कर चोरी ।
सूरत से  वह  साधक  है,पहचान  परे  नहि   सूरत  भोरी ।
बात बने लिखते वह तो,मति मारि गयी  बिनकीउ निगोरी ।
कोशिश ते तर जामत है,मति कोउ उन्हें यह दे फिर थोरी ।

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