अब तौ आजा मात भवानी तोहि रिझामें, तोहि मनावें, रे ! जग की ठकुरानी अर्चन - वंदन कौ विधान का, बोध न, हम अज्ञानी श्रद्धामय हो थाल सजायौ, करें भाव अगवानी कुमकुम टीका भाल लगाऊँ, ओढ चुनरिया धानी धूप, दीप, नैवैद्य, समर्पित, तुमको मा… Read more »
अब तौ आजा मात भवानी तोहि रिझामें, तोहि मनावें, रे ! जग की ठकुरानी अर्चन - वंदन कौ विधान का, बोध न, हम अज्ञानी श्रद्धामय हो थाल सजायौ, करें भाव अगवानी कुमकुम टीका भाल लगाऊँ, ओढ चुनरिया धानी धूप, दीप, नैवैद्य, समर्पित, तुमको मा… Read more »
मैंने देखी नारि हजार पर ऐसी कहूँ न पाई जब देखी पहली बारी बू नारि सुशीला न्यारी बाने कूटी सब ससुरारि संग पति की करी कुटाई मैंने देखी नारि हजार पर ऐसी कहूँ न पाई आयौ दूजी कौ नम्बर बाकौ खातौ पीत… Read more »
उपेंद्रवज्रा छंद UPENDRAVJRA CHHAND [जतजगुगु] छंद विधान : क्रमशः जगण, तगण, जगण, दो गुरु न साधना, वंदन, मोहि आवै तुम्हें रिझाऊँ, विधि को बतावै सुवासिनी सिद्ध सुकाज कीजै विवेक औ बुध्दि “नवीन” दीजै - नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष उपेन्… Read more »
पदपादाकुलक छंद का विधान एवं उदहारण पदपादाकुलक छंद {PADPADAKULAK CHHAND} पदपादाकुलक छंद विधान : – पदपादाकुलक छंद के चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में १६ मात्रायें होती हैं , छंद के आरम्भ में एक गुरु अथवा दो लघु (लघु-लघु) अनिवार्य होता है किन्तु त्रिक… Read more »
तोकूँ ढूँढू वर मैं सुयोग जो तेरे मन भाय विशाखा, जाकौ तेरौ योग चन्द्र सरीखौ, वीर बाँकुरौ, तन कौ रह्यौ निरोग रूठे तौ पढ़ प्रेम रिझावै, मेटै आत्म अनुयोग कृष्ण कन्हाई सों नैन समावै, सुखद विवाह संयोग क्यों कर… Read more »
BHAKTIPAD नाय करी मैंने माखन चोरी अकारथ मोय फ़ँसा रहीं रीबात बनामत कोरी निस दिन छेड़त,कारौ कह-कह,और आप कूँ गोरी छुपा बाँसुरी, मारै कांकर,कहें मटकिया फोरी करौ भरोसौ को विधि मैया,तू तो है बड़ भोरी Read more »
जैं लै रे गोपाल कन्हाई दाल चूरमा, माखन मिसरी, नहीं दूध दधि लाई रूखी सूखी, गेहूँ रोटी, जो मो सों बन पाई ता संग डरी लाई हूँ गुड़ की,दो अब भोग लगाई का भावै तेरे मन कान्हा, जानै को यदुराई - नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष Read more »
सुंदरी-माधवी सवैया विधान : क्रमशः आठ सगण और एक गुरु अभिमान बुरौ जग जानत है, पर मानत को यह भेद भलौ है । मन मानहु भूल गयौ अपनौ, अपमान सहे सुख गैर खलौ है । अपनेउ रिवाज तजे सगरे, अब रीति पछाँह नवीन चलौ है । जिस ओर निहार रहे नयना, उस ओर हमें यह दृश्य… Read more »
उ ठे धूल की जब जब आँधी, तो जलधार जरूरी है उठे धूल की जब जब आँधी, तो जलधार जरूरी है बहुत हुआ जुर्मों को सहना, अब संहार जरूरी है आज एक नारी की इज्ज़त, लुटती रही भीड़ भर में खड़े रहे कुछ मौन साध कर, कुछ दुबके अपने घर में कुछ के अ… Read more »
प्राकृतिक आपदा कहूँ इसे दुष्कर्मी अंजाम चहुँ दिशि कोरोना कोहराम चहुँ दिशि कोरोना कोहराम छुआछूत का रोग चला है छूने भर से यह फैला है सिर का दर्द, ताप है चढ़ता खाँसी, और जुकाम चहुँ दिशि कोरोना कोहराम चहुँ दिशि कोरोना कोहराम लोगों से … Read more »
उत्कर्ष कवितावली का संचालन कवि / लेखक नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष द्वारा किया जा रहा है। नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष मूल रूप से राजस्थान के भरतपुर वैर तहसील के गांव गोठरा के रहने वाले हैं।
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