सुंदरी-माधवी सवैया

विधान : क्रमशः आठ सगण और एक गुरु 

अभिमान बुरौ जग जानत है, पर मानत को यह भेद भलौ है ।

मन मानहु भूल गयौ अपनौ, अपमान सहे सुख  गैर खलौ है ।

अपनेउ   रिवाज  तजे सगरे, अब रीति पछाँह  नवीन चलौ है ।

जिस ओर निहार रहे नयना, उस ओर हमें यह दृश्य मिलौ है ।
सवैया
सुंदरी/माधवी सवैया