पर मानी न मैंने भी हार

पर  मानी  न  मैंने  भी  हार हर   दिवस   सहा    स्वजनी   प्रहार पर    मानी      न     मैंने     भी  हार न     कभी   झुका   न कभी रुका हूँ पथरीले        से        नहीं    डरा   हूँ दूना        प्रयास      किया    हरबार पर   मानी… Read more »

मदन/रूपमाला छंद [Madan/Roopmala chhnad]

छंद : मदन/रूपमाला विधान :  24 मात्रा, 14,10 पर यति, आदि और अंत में वाचिक   भार 21  कुल चार चरण, क्रमागत दो-दो चरणों में तुकांत देख  उसको  दिल  मचलता, प्रेम  है  या   भोग बोध  मुझको   इसका   नहीं, कौनसा  यह  रोग देख लेता  जब तक   न  मैं, चित्त को कब चैन चाँ… Read more »

ऋतुराज बसन्त(महाशृंगार) Rituraj basant [mahashringar Chhand]

छं द : म हा शृं गा र प्रकृति    सब   झूम  उठी है आज सुगंधित   तन    मन  आँगन द्वार बिछाये    पलकें       बैठी    देख रत्नगर्भा          करने         श्रृंगार पालना    डाले     द्रुम    दल   और पुष्प     ने      पहनाया      परिधान झुलाती    झूला   … Read more »

बदला लो (तांटक छंद) : badla lo [tantak chhnd ]

तांटक छंद : Tantak Chhand   चोरी    छिपकर   वार   किया है, जिन नापाकी श्वानों ने । कभी न उनको सबक सिखाया, गाँधीवादी    गानों   ने । मार्ग    अहिंसा   का   अपनाना, कलयुग में कायरता  है । जो  इसको   अपनाता   है  वह, कायर  जैसे   मरता है । कितनी… Read more »

बसन्त [Basant]

बसन्त (नई कविता) छाई दिल में उमंग,मन हुआ है प्रसन्न सब झूम रहे है,आया झूम के  ये बसंत चारो  तरफ  हरियाली  है, रुत  ये  खुशियों  वाली है सब के चेहरे खिले हुए  है, छाई होटों पे  खुशहाली है हुआ पूर्ण समय  ज्वलंत, हुआ  सब कष्टो  का अंत सबके चित हुए … Read more »

छप्पय छंद सविधान [chhappy chhand]

छप्पय छन्द विधान  यह मिश्रित छन्द है।   यह छह पंक्ति का छन्द है।   यह दो रोला + एक उल्लाला छन्द का मिश्रण है।   रोला छन्द ११/१३ की यति पर लिखा जाता है।   उल्लाला छन्द १३/१३ की यति पर लिखा जाता है।   छन्द अनुसार दो-दो पंक्तियों का समतुकान्त।           … Read more »

बृज : brij

दोहा• बृज देखो बृज बास को, अरु बृजवासिन रंग बृजरज की पावन  छटा, देख जगत सब दंग कवित्त : 8,8,8,7 वर्णों की चार समतुकांत पँक्तियाँ बृज   धाम    कूँ निहार, जित  प्रेम   मनुहार बाँटों      अपनौउ  प्यार, चलो   यार  बृज में आये  नाथन  के   नाथ, रखौ … Read more »

महाश्रृंगार छंद /MahaShringar chhand

महाशृंगार  छन्द का  विधान   १- यह चार पक्तियों  का  छन्द है, प्रत्येक पक्ति में कुल  16  मात्रायें हो ती हैं हर पक्ति  का  अन्त गुरु  लघु से करना अनिवार्य , दूसरी  ओर  चौथी  पक्ति  में  तुकान्त  मिलान  उत्तम पहली और तीसरी तथा दूसरी और चौथी पंक्ति  तुक… Read more »

उत्कर्षदीप जुगलबंदी - ०२ )

उत्कर्ष  दीप   जुगलबंदी - ०२  नहीं  होता  अशुभ  कुछ  भी, सदा  शुभ ये मुहब्बत है बसाया    आपको   उर    मे, तुम्हीं में आज भी रत है बताऊँ     मैं    प्रिया    कैसे, रहीं जब दूर तुम  मुझसे मिलन हो,श्याम श्यामा सा, कहो क्या ये  इजाजत है - नवीन श्रोत्रिय उत्कर्… Read more »

उत्कर्षदीप जुगलबंदी [आधार विधाता छंद]

उत्कर्ष   जुगलबंदी तुम्हारा    देखकर  चेहरा, हमें  तो  प्यार  आता है तुम्हारे  हाथ   का  खाना, सदा मुझको  लुभाता है बसे हो आप  ही  दिल  मे, बने हो प्राण इस तन के तुम्हारी आँख का काजल, मगर  हमको जलाता है नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष तुम्हारी  बात  पर   सज… Read more »

संकल्प : मनहरण कवित्त/घनाक्षरी

आन बान  शान रख, और  पहचान   इक भारती   का वीर रख, अडिग  जुबान  को काट   डाल रार वाली, खरपतवार      जड़ चूर  कर  डाल गिरि, जैसे  अभिमान  को दीमक  लगी हो जित, उत भी  नजर डाल देश  से  बाहर   कर, देश द्रोही  श्वान  को देश  की  अखंडता के, लिये ये जरूरी यज… Read more »