तांटक छंद : Tantak Chhand चोरी छिपकर वार किया है, जिन नापाकी श्वानों ने । कभी न उनको सबक सिखाया, गाँधीवादी गानों ने । मार्ग अहिंसा का अपनाना, कलयुग में कायरता है । जो इसको अपनाता है वह, कायर जैसे मरता है । कितनी… Read more »
तांटक छंद : Tantak Chhand चोरी छिपकर वार किया है, जिन नापाकी श्वानों ने । कभी न उनको सबक सिखाया, गाँधीवादी गानों ने । मार्ग अहिंसा का अपनाना, कलयुग में कायरता है । जो इसको अपनाता है वह, कायर जैसे मरता है । कितनी… Read more »
बसन्त (नई कविता) छाई दिल में उमंग,मन हुआ है प्रसन्न सब झूम रहे है,आया झूम के ये बसंत चारो तरफ हरियाली है, रुत ये खुशियों वाली है सब के चेहरे खिले हुए है, छाई होटों पे खुशहाली है हुआ पूर्ण समय ज्वलंत, हुआ सब कष्टो का अंत सबके चित हुए … Read more »
छप्पय छन्द विधान यह मिश्रित छन्द है। यह छह पंक्ति का छन्द है। यह दो रोला + एक उल्लाला छन्द का मिश्रण है। रोला छन्द ११/१३ की यति पर लिखा जाता है। उल्लाला छन्द १३/१३ की यति पर लिखा जाता है। छन्द अनुसार दो-दो पंक्तियों का समतुकान्त। … Read more »
दोहा• बृज देखो बृज बास को, अरु बृजवासिन रंग बृजरज की पावन छटा, देख जगत सब दंग कवित्त : 8,8,8,7 वर्णों की चार समतुकांत पँक्तियाँ बृज धाम कूँ निहार, जित प्रेम मनुहार बाँटों अपनौउ प्यार, चलो यार बृज में आये नाथन के नाथ, रखौ … Read more »
महाशृंगार छन्द का विधान १- यह चार पक्तियों का छन्द है, प्रत्येक पक्ति में कुल 16 मात्रायें हो ती हैं हर पक्ति का अन्त गुरु लघु से करना अनिवार्य , दूसरी ओर चौथी पक्ति में तुकान्त मिलान उत्तम पहली और तीसरी तथा दूसरी और चौथी पंक्ति तुक… Read more »
उत्कर्ष दीप जुगलबंदी - ०२ नहीं होता अशुभ कुछ भी, सदा शुभ ये मुहब्बत है बसाया आपको उर मे, तुम्हीं में आज भी रत है बताऊँ मैं प्रिया कैसे, रहीं जब दूर तुम मुझसे मिलन हो,श्याम श्यामा सा, कहो क्या ये इजाजत है - नवीन श्रोत्रिय उत्कर्… Read more »
उत्कर्ष जुगलबंदी तुम्हारा देखकर चेहरा, हमें तो प्यार आता है तुम्हारे हाथ का खाना, सदा मुझको लुभाता है बसे हो आप ही दिल मे, बने हो प्राण इस तन के तुम्हारी आँख का काजल, मगर हमको जलाता है नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष तुम्हारी बात पर सज… Read more »
आन बान शान रख, और पहचान इक भारती का वीर रख, अडिग जुबान को काट डाल रार वाली, खरपतवार जड़ चूर कर डाल गिरि, जैसे अभिमान को दीमक लगी हो जित, उत भी नजर डाल देश से बाहर कर, देश द्रोही श्वान को देश की अखंडता के, लिये ये जरूरी यज… Read more »
घर बाहर का मुखिया नर हो और नारि घर भीतर जान दोनों ही घर के संचालक दोनों का ऊँचा है स्थान बात करे जब मुखिया पहला दूजा सुने चित्त ले चाव बात उचित अनुचित है जैसी वैसा ही वह देय सुझाव बिना राय करना मत दोनों चाहे … Read more »
गृहस्थ : छंद - आल्हा/वीर,बृज मिश्रित ------------------------- जय जय जय भगवती भवानी कृपा कलम पर रखियो मात आज पुनः लिख्यौ है आल्हा जामै चाहूँ तेरौ साथ महावीर बजरंगी बाला इष्टदेव मन ध्यान लगाय निज विचार गृ… Read more »
उत्कर्ष कवितावली का संचालन कवि / लेखक नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष द्वारा किया जा रहा है। नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष मूल रूप से राजस्थान के भरतपुर वैर तहसील के गांव गोठरा के रहने वाले हैं।
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