मत्तगयंद सवैया : भगण×7+गुरु+गुरु सूरकुटी पर भीर भयी, कवि मित्र करें मिल कें कविताई । छन्दन गीतन प्रीत झरे, उर भीतर बेसुधि प्रीत जगाई । भाग बड़े जब सूरकृपा, चल सूरकुटी बृज आँगन पाई । देख छटा बृज पावन की,उर आज नवीन गयौ हरसाई । ✍… Read more »
मत्तगयंद सवैया : भगण×7+गुरु+गुरु सूरकुटी पर भीर भयी, कवि मित्र करें मिल कें कविताई । छन्दन गीतन प्रीत झरे, उर भीतर बेसुधि प्रीत जगाई । भाग बड़े जब सूरकृपा, चल सूरकुटी बृज आँगन पाई । देख छटा बृज पावन की,उर आज नवीन गयौ हरसाई । ✍… Read more »
पालीथिन से मर रही, गायें रोज़ हज़ार । बन्द करो उपयोग अब, नही जीव को मार ।। वर्षो तक गलता नही,नही नष्ट जो होय । दूषित पर्यावरण करे,नाम पॉलिथिन सोय ।। कपडे का थैला रखो,छोड़ पॉलिथिन आज । वर्षो तक गलता नही,दूषित करे समाज ।। मांग भरी … Read more »
आराधना : Aaradhana दोहा• प्रातः उठ वंदन करूँ,चरण नवाऊँ शीश । यशोगान तेरा करूँ, इतना दो आशीष ।। सुन लो मेरी अरज भवानी । तेरी महिमा जग ने जानी ।। दूर करो अज्ञान का साया । माता तेरीे दर पे आया ।। दोहा• करता में आराधना… Read more »
नारी: गजल [ Naari : Gazal ] बह्र : 212-212-212-212 भूख उसको भले पहले'खाती नहीं दुःख हों लाख ही पर जताती नहीं Bhookh Usko Bhale Pehle Khaati nahi Dukh Hon Lakh Hi Per Jatati nahi नित्य जल्दी जगे काम सारा करे बाद भी … Read more »
मंदाक्रांता छंद -------------------- [ विधान : मगण,भगण,नगण,तगण,तगण,गुरु,गुरु] ____________________________ मर्यादा मारग तज,चले लोग वो चाल देखो । माया के, मोहवश उनके जो रहे हाल देखो । हैं वो निर्भीक,सभय नही,ईश से घाल देखो । होना है अंत,समय बढ़ा … Read more »
छंद : मंदाक्रांता -------------------- मंदाक्रांता छंद परिचय :- यह छंद वार्णिक छंद है, वार्णिक छंदो में मंदाक्रांता लोकप्रिय छंद रहा है। इसके प्रत्येक चरण में क्रमशः मगण भगण, नगण, तगण, तगण,गु,गु, के योग से 17 वर्ण होते हैं। जिसमे क्रमशः 10 एवं 7 वर्ण… Read more »
मुक्तक : हिन्दू,हिंदी,हिंदुस्तान जय - जयकार करेगी दुनिया,हिंद वीर मतबारों की अडिग हिमालय सी हिम्मत है,आदत नही सहारो की ठान लिया हमने हिंदी को,शीर्षस्थ पहुंचाना है जग में केवल हिंदी होगी,हिंदी राज दुलारों की Muktak Read more »
!! बाद जिंदगी यूँही ढल जायेगी !! बिना हरि नाम के जीने वालो, जाम मद मोह, का पीने वालों, जाप हरि नाम का करके देखो, जाम हरि नाम का पीकर देखो, गति सुधरेगी,ओ भोले पंछी, उम्र बाकी भी सम्भल जायेगी, बाद जिंदगी यूँही ढल जाएगी, … Read more »
उत्कर्ष कवितावली का संचालन कवि / लेखक नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष द्वारा किया जा रहा है। नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष मूल रूप से राजस्थान के भरतपुर वैर तहसील के गांव गोठरा के रहने वाले हैं।
अधिक जाने.... →
Follow Us
Stay updated via social channels