!! बाद  जिंदगी यूँही ढल जायेगी !!

बिना हरि नाम  के  जीने वालो,
जाम मद  मोह, का पीने वालों,
जाप हरि नाम का करके देखो,
जाम हरि नाम का पीकर देखो,

गति  सुधरेगी,ओ भोले   पंछी,
उम्र बाकी भी सम्भल जायेगी,
बाद जिंदगी यूँही  ढल जाएगी,

जैसे इस तन को नित धोते हो,
वैसे ही  मन  को  अब धोना है,
काटना  है हमको जो भी कुछ,
ठीक  वैसा ही तो हमें बोना है,

खुशियों  वाली नयी सुबह होगी,
आई   विपदा   भी  टल जायेगी,
बाद  जिंदगी  यूँही ढल जायेगी,

आज  के काज कल  पे छोड़ो ना,
मैं  में  आकर  रिश्ते  तोड़ो   ना,
बोलो   है  कौन  पराया  जग में,
रक्त तो लाल सबकी रग रग में,

प्रेम   के  गीत  गाओ, गाने   दो,
सोचो   तो,  सोच  बदल जाएगी,
बाद   जिंदगी  यूँही ढल जायेगी

जिसको  देख  बड़ा  इतराते  हो,
अंत  उसे  छोड़  यहीं  जाते   हो,
व्यर्थ  मोह  का  ताना   बाना है,
खाली कर आये खाली जाना है,

है जो धन दौलत इन आँखों मे,
वो  ही एक   रोज  छल जायेगी,
बाद  जिंदगी  यूँही ढल जायेगी,

जियो  आप   औरों  को  जीने  दो,
प्रीत   रस   बाँट   सबको  पीने दो,
द्वेष हृदय में न तुम कभी भरना,
कड़वा  सच जान सभी का मरना,

बाकी   बचती   है  केवल   वाणी,
धूल  जब  धूल में  मिल जायेगी,
बाद  जिंदगी  यूँही  ढल जायेगी,
✍नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष”
    श्रोत्रिय निवास बयाना
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Utkarsh Kavitawali
Krishna Bhajan