पालीथिन    से   मर रही, गायें  रोज़  हज़ार ।
बन्द करो उपयोग अब, नही जीव को मार ।।

वर्षो  तक    गलता नही,नही नष्ट जो होय ।
दूषित पर्यावरण करे,नाम पॉलिथिन सोय ।।

कपडे   का थैला रखो,छोड़ पॉलिथिन आज ।
वर्षो   तक गलता नही,दूषित करे समाज ।।

मांग   भरी तुझ नाम की,हाथ मेहँदी रंग ।
हरे  कांच की चूड़ियां,पहन चली वो संग ।।

परिणय   कर  प्रीतम चले,छोड़ उसे,परदेश ।
पूछ    रही   वो   गोरडी,कब  आवोगे देश ।।

हरे कांच की चूड़ियां,तके  पिया    की राह ।
विरह दुख संताप में,पल पल भरती आह ।।

लिखी प्रेम की पातरी,सजनी साजन नाम ।
सूनो तुम बिन घर लगे,सूनो  सगरो गाम ।।

सजन पढ़े जब पातरी,जीव गयो अकुलाय ।
जल्द    मिलेंगे  जोगनी,काहे  रही सताय ।।

Utkarsh poetry : उत्कर्ष कवितावली
Utkarsh Dohawali
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Doha chhand doha vidhan doha udaharn
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