My Thoughts and Discuss on "Religion"

मेरे विचार : धर्म धर्म का शाब्दिक अर्थ तक नही जानते लोग,और स्वयं को धर्म अनुयायी कहते है । धारण करने योग्य सभी तत्व चाहे वह विचार,गुण,कर्म,व्यवहार,जो उद्देश्य,व जीवन का सच्चा अर्थ साकार करते है , एवं उन सिध्दांतों पर चलकर जीवन को श्रेष्ठता की प्राप्ति होती है । धर्म … Read more »

कविता और चोरी

दोहा ----- लेख    भले  ही चोर लो,कला न पावें चोर लिखना मेरा कर्म है,समझ सके कब ढोर रोला ------ समझ सके कब ढोर,काम भूसा से रहता । कुछ गुण रहे विशेष,चोर चोरी तब करता । सुनो “सुमन उत्कर्ष”,हवा से ही पात हलें । चोरी सकें  न रोक ,छुपा   लो   लेख भले… Read more »

कलाधर छंद [kaladhar chhand]

कलाधर छंद : Kaladhar Chhand  शिल्प बिधान :- कलाधर छंद Vidhan : 21*15 + 2 (गुरु+लघु×15+गुरु) ------------------------------------------------ कवित्त जाति के इस वर्णिक छंद का प्रत्येक चरण चंचला और चामर छंद के मेल से बना है । चंचला छंद में चार चरण होते है ज… Read more »

रास छंद (सविधान) Raas Chhand

रास छंद (सविधान) Raas Chhand विधान – 22 मात्रा 8-8-6 पर यति,अंत में 112,  चार चरण,क्रमागत दो-दो चरण तुकांत समय  कीमती,रहा  सदा ही,चेत  करो समय नही  है,पास तुम्हारे,ध्यान धरो मोह पाश  में,बंधे       मूर्खो,झूम    रहे भूल ईश को,नित्य मौत पग,चूम   रहे … Read more »

मासूम कविता : Innocent poetry

मासूम कविता : Innocent poetry नैना    निश्छलता    लिये,मुख से है मजलूम भूख  मिटाने  चल पड़ा, लेकर निज  मकसूम कौन  पराया,  है   सगा,  जाने   नही   निरीह  हँसता - रोता,  खेलता, कभी   रहा   वह झूम नवीन श्रोत्रिय“उत्कर्ष” मासूम कविता : Innocent poetry����… Read more »

गीत : Geet

प्रेम गीत : Love Song ------- मैं प्रेम डगर राही,रहूँ प्रेम के गांव मे मिट जाए तपन सभी,जुल्फों की छाँव में आई रुत मस्तानी खिलता सा यौवन है देखा जब से तुझको,बहका फिर से मन है पहन दूँ पैजनिया, तेरे अब पाँव म… Read more »

उत्कर्ष सृजन समीक्षा : शुभा शुक्ला मिश्रा “अधर”

उत्कर्ष सृजन समीक्षा : शुभा शुक्ला मिश्रा “अधर”  नवीन जी ! सर्वप्रथम तो मैं आपकाे बता दूँ कि मैं स्वयं को  एक समीक्षक नहीं मानती, समीक्षक का कार्य है किसी भी रचना को प्रत्येक दृष्टिकोण से जाँचना ,परखना, काव्य के गुण दोषों की कसौटी पर कसना ,तब उचित टिप्पणी देना… Read more »

विदाई गीत- Vidai Geet

हाय रे ! देखो किस्मत है खोटी, पराये घर,विदा हो जाती है बेटी, किसी ने नाम दिया तो , किसी का नाम है पाती, किसी ने पाला है इसको, किसी का आँगन है सजाती, घर की सब खुशियाँ है जब रूठी, पराये घर,विदा हो जाती है बेटी, बेटी कुछ अरमान संजोती, मेर… Read more »

माँ और मातृदिवस

दोहे            मातृ मूल्य समझे नही, देख  गजब संजोग अपनी     माता छोड़ के, पाहन  पूजत लोग दोनों की महिमा  बड़ी, किसका करूँ बखान माँ  धरती  के  तुल्य  है,पिता आसमाँ जान       कुण्डलियाँ       नंगे  पग, तपती  धरा,मास  रहा  जब  जेठ भिक… Read more »

तांटक छंद : tantak chhand बेटियाँ

पीले  हाथ  किये  बाबुल  ने,अपनी  बेटी  ब्याही है । अब तक तो कहलाई अपनी,अब वो हुई परायी है ।। नीर  झलकता है  पलको से,बेला  करुणा  की आयी । चली सासरे वह निज घर से,दुख की बदली है छायी ।। मात-पिता,बहिना अरु भाई,फूट - फूट  कर  रोते है । अपनी   प्यारी    लाडो   से,द… Read more »