प्रेम गीत : Love Song ------- मैं प्रेम डगर राही,रहूँ प्रेम के गांव मे मिट जाए तपन सभी,जुल्फों की छाँव में आई रुत मस्तानी खिलता सा यौवन है देखा जब से तुझको,बहका फिर से मन है पहन दूँ पैजनिया, तेरे अब पाँव म… Read more »
प्रेम गीत : Love Song ------- मैं प्रेम डगर राही,रहूँ प्रेम के गांव मे मिट जाए तपन सभी,जुल्फों की छाँव में आई रुत मस्तानी खिलता सा यौवन है देखा जब से तुझको,बहका फिर से मन है पहन दूँ पैजनिया, तेरे अब पाँव म… Read more »
उत्कर्ष सृजन समीक्षा : शुभा शुक्ला मिश्रा “अधर” नवीन जी ! सर्वप्रथम तो मैं आपकाे बता दूँ कि मैं स्वयं को एक समीक्षक नहीं मानती, समीक्षक का कार्य है किसी भी रचना को प्रत्येक दृष्टिकोण से जाँचना ,परखना, काव्य के गुण दोषों की कसौटी पर कसना ,तब उचित टिप्पणी देना… Read more »
हाय रे ! देखो किस्मत है खोटी, पराये घर,विदा हो जाती है बेटी, किसी ने नाम दिया तो , किसी का नाम है पाती, किसी ने पाला है इसको, किसी का आँगन है सजाती, घर की सब खुशियाँ है जब रूठी, पराये घर,विदा हो जाती है बेटी, बेटी कुछ अरमान संजोती, मेर… Read more »
दोहे मातृ मूल्य समझे नही, देख गजब संजोग अपनी माता छोड़ के, पाहन पूजत लोग दोनों की महिमा बड़ी, किसका करूँ बखान माँ धरती के तुल्य है,पिता आसमाँ जान कुण्डलियाँ नंगे पग, तपती धरा,मास रहा जब जेठ भिक… Read more »
पीले हाथ किये बाबुल ने,अपनी बेटी ब्याही है । अब तक तो कहलाई अपनी,अब वो हुई परायी है ।। नीर झलकता है पलको से,बेला करुणा की आयी । चली सासरे वह निज घर से,दुख की बदली है छायी ।। मात-पिता,बहिना अरु भाई,फूट - फूट कर रोते है । अपनी प्यारी लाडो से,द… Read more »
!! माँ : MAA !! मातृ मूल्य समझे नही,देख गजब संजोग अपनी माता छोड़ के,पाहन पूजत लोग दोनों की महिमा बड़ी,किसका करूँ बखान माँ धरती के तुल्य है,पिता आसमाँ जान नंगे पग, तपती धरा, मास रहा जब जेठ भिक्षा मांगी मात ने, भरा पुत्र का पेट भ… Read more »
"मेरा देश-मेरा भारत" रहमान संग में यहाँ,ईसा, नानक, राम । वीरों की जननी यही,भारत इसका नाम ।। विश्व पटल पर छाया न्यारा । प्यारा भारत देश हमारा ।। राणा, पन्ना, भामा, मीरा । यही हुए रसखान,कबीरा ।। चरक,हलायुध,अब्दुल,भाभा । विश्व पटल की … Read more »
भुजंगप्रयात छंद [Bhujangprayat Chhand] विधान : यगण×4 कुल 12 वर्ण लगी आग देखो,जला प्रेम सारा बना आज बैरी,रहा भ्रात प्यारा कभी सोचता हूँ,दिखावा भला क्यों रहा जो हमारा,उसी ने छला क्यों (2) मिलो आप कान्हा,मिले… Read more »
छंद : आल्हा/वीर शैली : व्यंग्य अलंकरण : उपमा,अतिशयोक्ति --------------------------------------------- चींटी एक चढ़ी पर्वत पे, गुस्से से होकर के लाल । हाथी आज नही बच पावे, बनके आई मानो काल । -------- कुल मेटू तेरे मैं सारो, कोऊ आ… Read more »
कुण्डलिया Kundaliyan बीती बातें भूल मत, बीती देती सीख बीती से नव सर्जना, बीती नवयुग लीक बीती नवयुग लीक, बढ़े चल जुड़कर आगे बीती पर कर शोध,छोड़ मत इसको भागे कहे मित्र उत्कर्ष , यहाँ यादें है जीती क्यों भूलो फिर… Read more »
बैठ प्रिया, तटनी तट पे, यह सोचत है कब साजन आवे । साँझ ढली रजनीश उगो, विरहा बन बैरिन मोय सतावे । सूख रही मन प्रेम लता, यह पर्वत देख खड़ो मुसकावे । देर हुई उनको अथवा, कछु और घटो यह कौन बतावे । ✍नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष” श्रोत्… Read more »
उत्कर्ष कवितावली का संचालन कवि / लेखक नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष द्वारा किया जा रहा है। नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष मूल रूप से राजस्थान के भरतपुर वैर तहसील के गांव गोठरा के रहने वाले हैं।
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