!! माँ : MAA !!

मातृ मूल्य समझे नही,देख गजब संजोग
अपनी  माता  छोड़  के,पाहन  पूजत लोग


दोनों की महिमा बड़ी,किसका करूँ बखान
माँ  धरती  के तुल्य है,पिता आसमाँ जान


नंगे  पग, तपती  धरा, मास रहा  जब जेठ
भिक्षा   मांगी  मात  ने, भरा   पुत्र  का पेट
भरा  पुत्र  का  पेट, रही सब दिन वह भूखी

अंतड़ियों  में  आँट, पिंडली  थककर  दूखी 
कहो  पुत्र   उत्कर्ष,मात   ममता   की  गंगे
रही  कष्ट   में  आप,रहे  थे  जब  तुम नंगे

✍नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष”
श्रोत्रिय निवास बयाना,राज

Utkarsh Kavitawali
Kundaliyan Chhand : Motherday special