मेहनत का फल

मेहनत का फल : Result Of Exertion गरीब ! कहने को तो सबहि होते है,पर मन से हार मान लेने वाला ही गरीब होता है,अगर मनुष्य की मन इच्छा सशक्त है,तो वह अपना भविष्य खुद सुनिश्चित कर सकता है,वह जो चाहेगा वही पावेगा । रामू बड़ा ही मेहनती था,निम्न वर्गीय परिवार मे जन्म होने… Read more »

भोर

शीर्षक : भोर(कविता) ________________________________ स्वप्न सजाये जो पलको पर, पूरा उनको,तुम अब कर लो, भोर भया, मिट गया अँधेरा, तुम मंजिल को फिर वर लो, स्वप्न सजाये जो पलकों पर, पूरा उनको तुम अब कर लो आलस को त्यागो, बढे चलो, मन में लोे ठान,दृढ़संकल्प हो मे… Read more »

दोहे : हिंदी

हिंदी   वाले   हिन्द  में,सब मिल रहते साथ | फिर हिंदी में क्यों नही,होती दिल की  बात ||१|| देवनागरी  मे  लिखो,मन  भीतर   जो  प्रीत | हिंदी  में  फिर  गाइये,मधुर  मिलन के गीत ||२|| हिन्द  देश  की  है बनी,हिंदी   ही  पहचान | निज भाषा में बोल कर,रखो  देश का मान ||३|… Read more »

तांटक छंद : tantak chhand

शीर्षक : मेरा कृष्णा विधा : तांटक छंद ________________________________ पाप बढे जब भी धरती पर,तुमको सभी पुकारे है । रूप लिया गिरधर तब तुमने,आकर कष्ट  उबारे है । कोइ कहे मन मोहन छलिया,काली कमली वारे है । जसुदा   के   लल्ला   मतवारे, मेरे  गिरधर प्यारे है । Read more »

मनहरण कवित छंद /घनाक्षरी

शीर्षक : देशभक्त सारे जग को  बिसार, देते  तन मन वार करे भारती  के लाल, वो  कहाँ आराम है काटे दस  दस  शीश, मारे एक संग बीस नही डरते  वो  चाहे, कुछ  भी  अंजाम है  भूलकर  जाँत   पाँत, बस कहे  यह  बात अपनी माँ भारती ही, अल्हा और राम है माँ भारती के … Read more »

Dohe/दोहे

प्रेम हृदय में  धारिये,प्रेम  रत्न  यह  ख़ास । जहाँ प्रेम का वास है,वही  प्रभो  का वास ।। ब्रह्मदेव   के   पुत्र  है,ब्रह्म    बना   आधार । परशुराम सम तेज है,यह ब्राह्मण का सार ।। राजपूत राजा बने,मिला  दिव्य  जब ज्ञान । मैं ब्रह्मा का पुत्र हूँ,अब  तो  मुझको जान ।।… Read more »

शायरी कहूँ या दर्द

* अर्ज करता हूँ * "तेरी बातों में जब मेरा ही जिक्र हो, फिर कैसे ना मुझे  तेरी  फ़िक्र हो... * एक और * मोहब्बत से नफरत थी तुम्हे,ऐ !जिंदगी फिर नफरतो में हमारा क्या काम...... प्यार से नफरते बनी,नफरतो से बने गम, गम  से बनी जिंदगी,जिंदगी से  बने हम, जब प्यार न… Read more »

मत्तग्यन्द सवैया : 4

छंद : मत्तग्यन्द सवैया _______________________________ पाप  बढ़े  जिससे  वसुधा,प्रभु नित्य कँपे  यह  संकट  टारो । मान मिले नहिं मात-पिता,मद मोह  बसो  सुत  है  मतबारो । गाय  मरे  अब  नित्य यहाँ,यह   मानवधर्म   अधर्म  सम्हारो । आप  गये  सगते कह कें,फिर केशव आकर सृष्ट… Read more »

मुक्तक : 06

(1) फिरो क्यों  फेसबुक पर  ढूँढते  तुम प्यार को यारो । मिले सच्चा यहाँ फिर कब,सुनो सब इश्क के मारो । रही  ये  फ़ेसबुक  जरिया,जुडो  इक दूसरे  से  तुम । मगर मतलब  ज़माना  है,इसे  भी  जान लो प्यारो ।। (2) जमाना है बड़ा  जालिम,समझ दिल को न पाता है । रखे यह स्वार्थवश रि… Read more »

छंद : असंबधा (asambandha chhand)

छंद : असंबधा (asambandha chhand) (1) ---------------------- कान्हा  आओ  प्रेम अगन मन लागी है चाहे    तेरा    दर्शन   अब   अनुरागी  है प्रेमी हूँ तेरा  सुन, तुझ   बिन  मेरा  ना  तारो  प्यारे  मोहन गिरधर हे !  कान्हा (2) ✍नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष” … Read more »

मदिरा सवैया छंद - Madira Saviya Chhand

छंद : मदिरा सवैया [भगण×7+1] रस : श्रृंगार चरण : 4 यति : 10/12  ------------------------------------------- नैन  मिले  जबसे  उनसे,वह  ही  अँखियों  पर छाय रही चैन नही  दिन  में  हमकूँ, रजनी  भर  याद  सताय रही प्रेम हुआ  हमको  सुनलो,मन अग्नि यही समझा… Read more »