छंद : मदिरा सवैया [भगण×7+1]

रस : श्रृंगार
चरण : 4 यति : 10/12 
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नैन  मिले  जबसे  उनसे,वह  ही  अँखियों  पर छाय रही
चैन नही  दिन  में  हमकूँ, रजनी  भर  याद  सताय रही
प्रेम हुआ  हमको  सुनलो,मन अग्नि यही समझाय रही
साथ मिले तब जान रहे,नहिं  साँस   हमें   ठुकराय रही

✍नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष”
    श्रोत्रिय निवास बयाना
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utkarsh kavitawali
Madira-Savaiya