मुक्तक : 06

(1) फिरो क्यों  फेसबुक पर  ढूँढते  तुम प्यार को यारो । मिले सच्चा यहाँ फिर कब,सुनो सब इश्क के मारो । रही  ये  फ़ेसबुक  जरिया,जुडो  इक दूसरे  से  तुम । मगर मतलब  ज़माना  है,इसे  भी  जान लो प्यारो ।। (2) जमाना है बड़ा  जालिम,समझ दिल को न पाता है । रखे यह स्वार्थवश रि… Read more »

छंद : असंबधा (asambandha chhand)

छंद : असंबधा (asambandha chhand) (1) ---------------------- कान्हा  आओ  प्रेम अगन मन लागी है चाहे    तेरा    दर्शन   अब   अनुरागी  है प्रेमी हूँ तेरा  सुन, तुझ   बिन  मेरा  ना  तारो  प्यारे  मोहन गिरधर हे !  कान्हा (2) ✍नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष” … Read more »

मदिरा सवैया छंद - Madira Saviya Chhand

छंद : मदिरा सवैया [भगण×7+1] रस : श्रृंगार चरण : 4 यति : 10/12  ------------------------------------------- नैन  मिले  जबसे  उनसे,वह  ही  अँखियों  पर छाय रही चैन नही  दिन  में  हमकूँ, रजनी  भर  याद  सताय रही प्रेम हुआ  हमको  सुनलो,मन अग्नि यही समझा… Read more »

छंद : कुण्डलिया

छन्द : कुण्डलिया ---------------------- अज्ञानी  बिन आपके,ज्यो जल बिन हो मीन । कृपा करो माँ शारदे,विनती    करे     नवीन ।। विनती करे  नवीन,सूझ कब  तुम बिन माता । दो  मेधा  का  दान,मात   मेधा     की   दाता । जग करता गुणगान,मात तुम  आदि भवानी । मिले तुम्हारा  साथ,… Read more »

वसुमति छंद

*वसुमति छंद* [तगण,सगण] ------------------- तू ही जगत में, तू ही भगत में, है वास सब में, हूँ बाद जब मैं, -----------------                -------------------                आधार  तुम  ही,                हो  सार  तुम ही,                ये   पार  तुम ही,      … Read more »

मुक्तक : 05

आपका इंतज़ार ------------------------ बिठा कर हम निगाहों को,किये इन्त'जार बैठे है । मचलता है कि पागल मन,लिए हम प्यार बैठे है । तमन्ना  इक  हमारी   तुम,रही  कब दूसरी  कोई । चली आओ सनम अब हम,हुए  बेक'रार बैठे  है । फ़ेसबुक और प्यार ------------------------… Read more »

शौचालय के नारे [slogan For Shauchalay]

शौच   खुले    में   नहिं  जायेंगे । हम     शौचालय     बनवायेंगे ।। अपनी   सुरक्षा    अपने   हाथ । शौचालय  की   हो  अब  बात ।। बूढी   माँ   नहि   हो    परेशान । शौचालय  पर  दो  सब  ध्यान ।। सड़क   किनारे   स्वच्छ   रहेंगे । निर्मल    गाँव     मित्र    करेंगे ।। स… Read more »

जिंदगी (कविता)

जिंदगी कभी धूप की तरह , खिल उठती है , वो .... फूलों की मुस्कराती है , बारिश बनकर , तपती धरा को , संतृप्त कर देती है , घोल देती है फिजाओं में महक , कर देती है सुगन्धित , तन , मन , बेहिसाब लुटाती है , प्यार अपना , कभी … Read more »