*वसुमति छंद*
[तगण,सगण]
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तू ही जगत में,
तू ही भगत में,
है वास सब में,
हूँ बाद जब मैं,
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आधार तुम ही,
हो सार तुम ही,
ये पार तुम ही,
वो धार तुम ही,
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(उर्दू प्रयोग)
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तेरी नजर है ।
मेरी बसर है ।।
तेरा असर है ।
तेरी कसर है ।।
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कान्हा दरस दो,
वाणी सरस दो,
तारो तमस भी,
ना हो अमस भी,
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✍नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष”
श्रोत्रिय निवास बयाना
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