छन्द : कुण्डलिया
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अज्ञानी  बिन आपके,ज्यो जल बिन हो मीन ।
कृपा करो माँ शारदे,विनती    करे     नवीन ।।
विनती करे  नवीन,सूझ कब  तुम बिन माता ।
दो  मेधा  का  दान,मात   मेधा     की   दाता ।
जग करता गुणगान,मात तुम  आदि भवानी ।
मिले तुम्हारा  साथ,चाहता    यह    अज्ञानी ।।
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भोर भयी दिनकर चढ़े,जागी फिर से आस ।
पंछी  कर  संघर्ष  अब,लेकर  नव  विश्वास ।।
लेकर नव विश्वास,भूल फिर से मत करना ।
जीवन है तप,योग,ध्यान इसका तुम धरना ।
कहे अनुज उत्कर्ष,ये  स्वर्णिम  घड़ी  नयी ।
अब तो   पंछी  चेत,देख  फिर  भोर  भयी ।।
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जीवन का उद्देश्य तुम,तुम्ही आदि तुम अंत ।
ये समझे जो भी प्रभो,हो    जाता    निश्चंत ।।
हो   जाता  निश्चंत,दास  प्रभु  का कहलाता ।
भव  से  होता  पार,बाद  वह  तुमको  पाता ।
कहे  भक्त  उत्कर्ष,मोह  माया   है  उलझन ।
छोड़  धरो हरि ध्यान,सुधारो अपना जीवन ।।
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विपदा का मारा प्रभो,करना  सदा  सहाय ।
संकटमोचन आप ही,मंगल करण कहाय ।।
मंगल  करण  कहाय,वीर  बजरंगी  बाला ।
पवन  देव के  पुत्र मात अंजनी  के लाला ।
कहे  भक्त  उत्कर्ष,विपत  बड़ी मारो गदा ।
लगे कहीँ कब ध्यान,परी जबसे ये विपदा ।।
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खट्टा तुम खाना नही,सन्तोषी   के     वार ।
मनोकामना पूर्ण कर,देती     मैया      तार ।।
देती    मैया    तार,धन्य  जीवन  हो  जाये ।
मोह जाल से जीव,मुक्त  होकर  प्रभु पाये ।
कहे भक्त  उत्कर्ष,लगाते  क्यों  फिर  बट्टा ।
त्यागो खाना आप,भोज  जिसमे  हो खट्टा ।।

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बजरंगी  बाला  सुनो,अर्ज  हमारी आप ।

सदा साथ  देना प्रभो,हरना  मन संताप ।।

हरना  मन संताप,गीत प्रभु के हम गायें ।

उर  के मिटे विकार,पाप सारे मिट जायें ।

बने जहाँ के दीप,करें नित बाद उजाला ।

अर्ज  करे  उत्कर्ष,सुनो  बजरंगी  बाला ||

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भूलो  मत  गुरुदेव   को,गुरू  गुणों  की खान ।

दिवस आज गुरुदेव का,करो आप सब ध्यान ।।

करो  आप  सब ध्यान,सफल तब ही हो पावें ।

गुरू   ज्ञान     के   दीप,बात  यह  वेद बतावें ।

भूल    गुरू    नादान,अधर में क्यों तुम झूलो ।

कहे    शिष्य    उत्कर्ष,गुरूजी को मत भूलो ।।

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बजरंगी बलवीर  का,है   ये   मंगलवार ।

राम नाम के साथ जप,होवे  बेड़ा  पार ।।

होवे    बेड़ा   पार,बात यह उर में धारो ।

संकट   होवे   दूर,आप हनुमान उचारो ।

कहे भक्त उत्कर्ष,नाथ दुखिया के संगी ।

शंकर के अवतार,वीर   बाला  बजरंगी ||


✍नवीन श्रोत्रिय "उत्कर्ष"

   श्रोत्रिय निवास बयाना

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