कुंडलिनी छंद [kundlini chhand]

छन्द : कुंडलिनी विरह  सतावे  पीव जी,लगी  मिलन  की  प्यास | कद आओगे थे लिखो,बीत     रहा     मधुमास || बीत    रहा    मधुमास,चैन  तुम  बिन नहि आवे | तडपू  पल  छिन  पीव,घणी   ये विरह सतावे || - नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष Read more »

कुंडलियां :

अज्ञानी  बिन आपके,ज्यो जल बिन हो मीन । कृपा करो माँ शारदे,विनती   करे     नवीन ।। विनती करे  नवीन,सूझ कब तुम बिन माता । दो  मेधा  का  दान,मात   मेधा    की   दाता । जग करता गुणगान,मात तुम आदि भवानी । मिले तुम्हारा  साथ,चाहता    यह   अज्ञानी ।। ✍🏻नवीन श्रोत्रिय … Read more »

मुक्तक : MUKTAK

उत्कर्ष मुक्तक : UTKARSH MUKTAK ------------ ज्ञान बिना मतिमूढ़ मैं,जैसे   जल बिन  मीन कृपा करो   माँ  शारदे, कहता   निर्बल    दीन सार  जगत  का  आप ही, आप  बनी  आधार सदा  साथ  दो  अम्बिका, विनती करे नवीन नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष श्रोत्रिय निवास बयाना Mu… Read more »

दुम दार दोहा : ०१

महाशिव रात्रि ---------------- महादेव  को  था मिला,माँ  गौरा  का साथ । फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी,बनी महाशिव रात ।। रात    मंगल    फलदायी । साथ भर खुशियाँ लायी ।। मद ---- मदिरा कंचन कामिनी,और धरा का प्यार । आज जरूरत यह बने,चाहे  अंत  बिगार ।। बात  वो  ही  ना माने । सार इनक… Read more »

डर ! आखिर क्यों ?

मौत के डर से, क्यों? तुमने जीना छोड़ दिया, तू मेहनकश है,फिर रुख क्यों न मोड़ दिया, ये तो एक अटल सत्य है,आखिर होकर ही रहेगा, क्या आज,एक और सत्य ने,इंसान को तोड़ दिया , सुना था मैंने,इतिहास गवाह है,है ये वीरो की भूमि, उन वीर सपूतों ने,अच्छे-अच्छो को मरोड़ दिया, जीन… Read more »

दैनिक दोहे : 03

गजमुख की करूँ वंदना,धर   वाचा का ध्यान । पंचदेव   गुरु देव जी ,रखो  कलम का मान ।। पग वंदन गुरुदेव का,नित्य नवाऊँ शीश । ज्ञानदान तुम  दीजिये,दो      स्नेहाशीष ।। नमन तुम्हे  माँ  शारदे,नमन काव्य परिवार । नमन धरा यह पावनी,नमन करो स्वीकार ।। कण कण में वह व… Read more »

राजस्थानी डोला और परदेशी प्रियतमा के बीच वार्तालाप

साजन  तेरे  देश   की,है  कैसी  यह  रीत । जित देखूँ में झांक कें,उते मिले बस प्रीत ।। सजनी  मरुधर  देश  ये,है वीरो की खान । आपस में मिल जुल रहें,यहाँ राम रहमान ।। साजन   तेरे    देश    के,अलग थलग है रंग । कहीँ   बजत  है  दुंदुभी,कहीँ बजत है चंग ।। सजनी  मेरा  … Read more »

मुक्तक : 03

मुक्तक ------------ अगर चाहो मिले मंजिल,करो श्रम साधना पूरी । परिश्रम से मिले सबकुछ,भले हो भाग्य में दूरी । नही होता कभी हासिल,भरोसे भाग्य जो रहते । वही कहते मिले कैसे,बना जब भाग्य मजबूरी ।। ✍नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष”     श्रोत्रिय निवास बयाना   +91 84 4008-40… Read more »

आपकी समीक्षा : प्रतिभा प्रसाद (जमशेदपुर)

प्रतिभा प्रसाद (जमशेदपुर ) जी की कलम से...  नवीन जी हिंदी साहित्य का उभरता सितारा हर विधा के सिद्धहस्त लेखक आपको और आपकी लेखनी को नमन करती हूँ । समीक्षा का प्रयास कर रही हूँ। पहली रचना में कर्म की प्रधानता है। भाग्य  भी कर्म  करने वालोें का ही साथ देती है। गीता म… Read more »

मुक्तक : MUKTAK

मुक्तक : MUKTAK मुझे   ले   लो     शरण   में   आप   हे     बजरंग   बालाजी करूँ    इक   ध्यान    बस   तेरा  चढा   है    रंग   बालाजी   करो    वो    आप कुछ ऐसा , हुआ  ना   आज    तक जो हो करो       ऐसा      रहे    सारा    जमाना     दंग     बालाजी … Read more »

दैनिक दोहे : 2

अपनी किस्मत आप ही , लिख  सकते    श्रीमान । परिश्रम से   सम्भव यही , भाग्य   विधाता जान ।। कमला ,   गौरी , शारदे , जगदम्बा    के     रूप । महिमा अथाह है मात की , कहते ऋषि मुनि वेद ।। वेद   शास्त्र   औ ग्रन्थ का , रावण को   था ज्ञान … Read more »