प्रतिभा प्रसाद (जमशेदपुर) जी की कलम से... 

नवीन जी हिंदी साहित्य का उभरता सितारा हर विधा के सिद्धहस्त लेखक आपको और आपकी लेखनी को नमन करती हूँ । समीक्षा का प्रयास कर रही हूँ। पहली रचना में कर्म की प्रधानता है। भाग्य  भी कर्म  करने वालोें का ही साथ देती है। गीता में भी कर्म प्रधान माना गया है।लोभ और द्वेष से मंजिल नहीं मिलती और  नहीं उद्देश्य पूर्ण जीवन ही प्राप्त होता है।मोहजाल से संताप ही मिलता है। दूसरी रचना में राजस्थानी  ढोला  और उसकी परदेशी प्रियतमा के बिच का वार्तालाप है। राजस्थान प्रेम प्रीत की रीत से फली फूली है।यह भूमि  वीरों की खान है। प्रिय तुम्हारे देश में सब का मान आदर है। यहां वचन का मान है । भले  ही जान क्यों न चली जाए। वचन खाली नहीं जाता है। यहां मोर के सुहाने बोल से भोर का स्वागत होता है। कुल  मिलाकर  कवि  अपनी  दोनों  रचनाओं   में सफल रहा है। साहित्य और समाजिक दृष्टि से दोनों कविता का अपना ही महत्व है ।
समीक्षक : 
प्रतिभा प्रसाद जमशेदपुर
3.2.17.
Utkarsh Kavitawali
Writes Review By : Pratibha Prasad Jamsedpur