मुक्तक
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अगर चाहो मिले मंजिल,करो श्रम साधना पूरी ।
परिश्रम से मिले सबकुछ,भले हो भाग्य में दूरी ।
नही होता कभी हासिल,भरोसे भाग्य जो रहते ।
वही कहते मिले कैसे,बना जब भाग्य मजबूरी ।।

✍नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष”
    श्रोत्रिय निवास बयाना
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