मौत के डर से, क्यों? तुमने जीना छोड़ दिया,
तू मेहनकश है,फिर रुख क्यों न मोड़ दिया,

ये तो एक अटल सत्य है,आखिर होकर ही रहेगा,
क्या आज,एक और सत्य ने,इंसान को तोड़ दिया ,

सुना था मैंने,इतिहास गवाह है,है ये वीरो की भूमि,
उन वीर सपूतों ने,अच्छे-अच्छो को मरोड़ दिया,

जीना सिखलाया दुनियां को,चाहे विपदा भारी हो,
परख वीर की रण में होती,चाहे रात और भी कारी हो,

धवल चांदनी ने, भरम निशा का,फिर से तोड़ दिया,
मौत के डर से,फिर क्यों तुमने ? जीना छोड़ दिया ।।

✍🏻नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष”
      श्रोत्रिय निवास बयाना