छंद : माहिया
इज्जत है इबादत है
सच मानो यारो
वो फक्त मुहब्बत है
कब प्रेम जताने को
झलका इस तरहा
तू प्रीत पै'माने को
मुझको न सताओ तुम
चाहतहै, छल है
ये भेद बताओ तुम
है दर्द मुहब्बत ये
जीना है जिनको
उनकी न जरूरत ये
आरूप हुआ रत है
तन की चाह लिये
ये प्रेम नहीं लत है
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8 Comments
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 21 जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteयशोदा जी, ब्लॉग पर मेरी रचना को स्थान प्रदान करने के लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद, आभार
DeleteSundar abhivyakti
ReplyDeleteमहेश जी अमूल्य प्रतिक्रिया के लिये दिली आभार
Deleteसुन्दर सृजन
ReplyDeleteआ•जोशी जी सराहना के लिये नत हूँ ।
Deleteवाह!!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
सुधा जी, सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ।
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