विधान : कहमुक़री चार चरणों में लिखी जाती है,जिसके प्रत्येक चरण का मात्रा भार 15-15 अथवा 16 -16 होता है ।

सुबह शाम   मैं   उसे  रिझाऊँ,
नैन पलक पर  जिसे  बिठाऊँ
बिन  उसके   दिल   है बेहाल,
क्यों सखि साजन?ना गोपाल

घड़ी - घड़ी  मैं  राह  निहारूँ
सुबह शाम नित उसे पुकारूँ
दरस   बिना,  जीवन  बेकार
क्यों सखि साजन,न करतार

जा  कारे   के    हम   दीवाने
कर   डारै    बा    नै    बेगाने
छोड़ गयो,ज्यूँ  रह्यो  न काम
का सखि साजन,न घनश्याम

दूर  रहे  नहीं पास  वो आये ।
फिर  भी  मेरे दिल को भाये ।
धवल   रूप, नैनों   में   शेष ।
का सखि प्रीतम,नहीं राकेश ।

- नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष