उसका निखरा रूप था,नागिन सम थे बाल ।
घायल करती जा रही,चल मतवाली चाल ।।

चन्द्र बदन कटि कामनी,अधर एकदम लाल ।
नयन   कटारी   संग  ले,करने  लगी हलाल ।।

जबसे  देखा  है    तुझे,पाया  कहीं  न चैन ।
प्रेम   रोग    ऐसा लगा,नित बरसत ये नैन ।।

प्रीतम  से होगा मिलन,आस  भरे  दो  नैन ।
स्वपन सलोने बुन रही,देखो  फिर  से रैन ।।

विरह पीर तुम जान लो,ओ  रांझे  की हीर ।
तडप रहा मैं  नित यहां,बहे नयन से  नीर ।।

सात जन्म तक चाहता,क्या तुम दोगी साथ ।
उसने ये सुन  रख दिया,फिर हाथो में  हाथ ।।

सजनी से होगा मिलन,कहे  यही  दो  नैन ।
खुशियों को ओढ़े  हुये,जब   आएगी रैन ।।

✍नवीन श्रोत्रिय "उत्कर्ष"
    श्रोत्रिय निवास बयाना

मि•नवीन श्रोत्रिय "उत्कर्ष"
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