मिट्टी वाले दीये  जलाना,
जो   चाहो  दीवाली  हो,
उजला - उजला पर्व मने,
कही रात  न  काली  हो,

मिटटी वाले.................

जब से चला  चायना वाला,
कुछ की किस्मत फूट गयी
विपदा आई  एक अनोखी
रीत  हिन्द   की   टूट  गयी,

भूल न जाना रीत हिन्द की
सबके  मुख  पर  लाली हो
मिटटी वाले  दिये  जलाना
जो   चाहो    दीवाली    हो

भाई चारा  भूल  गए  क्यों,
अब अपनों  में  प्यार नही
लगे मानने गैर  को अपना
ये   अपना  व्यवहार  नही

रखो वतन का मान हमेशा
सबसे   शान   निराली  हो
मिटटी वाले  दीप  जलाना
जो    चाहो   दिवाली    हो

हार फूल के  और  रंगोली
मन  को  क्यों नही भाते है
चले  लुटाने   पैसे  उनपर
जो    आतंक    मचाते   है

चलो नही उस पथ पे यारो
लगे   देश   को   गाली  हो
मिटटी वाले  दीप  जलाना
जो    चाहो   दीवाली    हो

✍नवीन श्रोत्रिय "उत्कर्ष"
    श्रोत्रिय निवास बयाना