जग की कोरी रीत लिखेंगे तन्हाई का गीत लिखेंगे माया की है हाहाकारी स्वार्थ भरी सब नातेदारी हारी कैसे जीत लिखेंगे तन्हाई का गीत लिखेंगे जब से देखा अपना माना कौन सगा है क्या बेगाना बिछड़ा कैसे मीत लिखेंगे तन्… Read more »
जग की कोरी रीत लिखेंगे तन्हाई का गीत लिखेंगे माया की है हाहाकारी स्वार्थ भरी सब नातेदारी हारी कैसे जीत लिखेंगे तन्हाई का गीत लिखेंगे जब से देखा अपना माना कौन सगा है क्या बेगाना बिछड़ा कैसे मीत लिखेंगे तन्… Read more »
" समय" किसके पास है ? खुद ही खुद को क्यों औरों से खास है ये समय है , समय किसके पास है लिक्खा है मैंने भावों की ले स्याही खुशियों से मातम , मातम से तबाही शब्द वही हैं , तो क्या … Read more »
सत्य सनातन सदा ही शिव है सत्य सनातन सदा ही शिव है पावन श्रावण मास लगौ, धर ध्यान उपास महाशिव पूजौ काल यही इक कालन के, इनसौ कब कौन कहाँ पर दूजौ हो करुणा हिय भाव दया, तब नाथ प्रसन्न नहीं फिर जूझौ सार यही सब ग्रंथन कौ, अब और नवीन नहीं तुम बूझौ … Read more »
कृष्ण भजन Krishna Bhajan उनसों का प्रीत रखें, जिन प्रीत काम की करनी तो उनते,करें, मुक्ति भव धाम की घर ते चले जो आज, मिलवै भगवान ते उनकूं न ढूँढे मिले, साँची ईमान ते कान्हा कूँ सब जग खोजत है, कान्हा कहूँ न पावैगौ का… Read more »
हिंदी पत्रिकाओं, एवं हिंदी साहित्यिक संस्थाओं को सहायतार्थ यथोचित अनुदान दें। संस्था अथवा पत्रिका का नाम अनुदान देते समय टिप्पणी में उल्लेखित करें। अधिक जानकारी के लिए सम्पर्क करें। ☎ +919549899145 MUKTAK चलाये बाण नैनों के, बना उनका निशाना दिल चढ़ी … Read more »
जीव के कर्म पर जीव का अवतरण जीव ऊपर चढ़ा मृत्तिका आवरण कर्म ऐसे करो मानवी तन मिले सद्गुणों का करो, सबहि अब अनुशरण Muktak : Utkarsh Kavitawali हिंदी पत्रिकाओं, एवं हिंदी साहित्यिक संस्थाओं को सहायतार्थ यथोचित अनुदान दें। … Read more »
गरमी गरमी ते गरमी मिली, गरम रह्यो फिर आज गरमी ते गरमी घटी, कैसौ गरम रिवाज कैसौ गरम रिवाज, ठंड पे बहुतै भारी हुये अधमरे आज, गरमी है अत्याचारी सुनौ सखा उत्कर्ष, रखौ रसना में नरमी वरना उल्टे हाथ, प… Read more »
किसी ने पूछा प्रेम क्या है ? तब मेरे अंतःकरण से जो जवाब बन पड़ा वह आपके समक्ष रखता हूँ | प्रेम आत्मा का राग है, चित्त का अनुराग है, रिश्तों का भाग है वैरागी का वैराग है, भक्ति की लाग है, अर्थात प्रेम आत्मा का वह भाव, वह सम्प्रेषण का माध्यम है, जो दूर से … Read more »
Ghnakshari Chhand जाति -पाँति धर्म नहीं, काम भेड़ियों की कोई ऐसे भेड़ियों को अब, मिल मार डालिये सामाजिक सौहार्द को, कमजोरी मान रहे ऐसे शन्तिदूतों को भी, घर से निकालिये करते वे नित पाप, क्षमा दान देते आप दानवीर बनके यूँ, … Read more »
Manharan Kavitt Chhnad घनाक्षरी छंद : मनहरण कवित्त रावण के जैसा कृत्य, करते है आज वही जिनको है भान नहीं, राम के प्रताप का रोम रोम उनका तो, काम, लोभ जपता है मोह परिपूर्ण होके, नाश करें आपका भूल बैठे रावण ने, प… Read more »
उत्कर्ष कवितावली का संचालन कवि / लेखक नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष द्वारा किया जा रहा है। नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष मूल रूप से राजस्थान के भरतपुर वैर तहसील के गांव गोठरा के रहने वाले हैं।
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