उत्कर्ष दोहावली [UtkarshDohawali]

उत्कर्ष दोहावली   [UTKARSH DOHAWALI)  दोहा छंद विधान : तेरह ग्यारह मात्रा भार के चार चरण प्रत्येक ग्यारहवीं मात्रा वाला वर्ण लघु , समचरण तुकांत राधेश्याम     कृपा    करो, काटो   भव  के फंद तबहि मजा ब्रज बास कौ, और   मिले   आंनद गिरिधर  तेरे   ही   … Read more »

उत्कर्ष दोहावली [UTKARSH DOHAWALI]

उत्कर्ष दोहावली   [UTKARSH DOHAWALI] पेड़    हुये   कंक्रीट  के, उजड़े      वन     उद्यान सन्नाटा अब व्योम में, नहीं   मधुर  खग   गान कण कण में वह व्याप्त है, हर कण उसका जान खोल  नयन “उत्कर्ष” फिर,  कर  उसकी  पहचान जन्म सफल करलो सभी, कर… Read more »

मनमनोरम छंद [MANMANORAM CHHAND]

मनमनोरम छंद रावण उवाच : देख  मेरी    दृष्टि   से   तू जान  पायेगा  मुझे  तब तारना   है  कुल मुझे वह  वक्त आयेगा चला अब हूँ कुशल    शासक,पुजारी   ईश का हूँ मैं अभी भी राम   भव    से   तारने  वापस न आएंगे कभी भी आस  लेकर जानकी जपती रही है नाम  जिन… Read more »

मदिरा के दुष्प्रभाव [Effect Of Wine]

कृष्ण  सुनो  अरदास    मम, चाह तुम्हारा साथ लोभ,  द्वेष    उर    से  हरो, तारो  भव से नाथ दारू  कब  घी सम रही, पी  कर  भरो  न जोर बाद  गलाती   जिस्म ये, है     बीमारी      घोर अलग -अलग उपनाम है,अलग-अलग अंदाज करना  मत  मधुपान तुम,यह दुर्जन का  काज कभी… Read more »

प्रमिताक्षरा छंद [pramitakshara Chhand] व विधान

प्रमिताक्षरा छंद विधान : सगण,जगण,सगण,सगण=12 (१) पहचान ध्येय, पथ,जीवन,को उस ओर मोड़ फिर तू मन को तज लोभ,द्वेष अरु मोह सभी भव  ताल   पार  उतरे तब ही  (२) यह  मोह मित्र  सबको छलता फँस  मोहजाल,जीवन जलता कर जाप नित्य मन मोहन का यह सार  एक  इस … Read more »

पर मानी न मैंने भी हार

पर  मानी  न  मैंने  भी  हार हर   दिवस   सहा    स्वजनी   प्रहार पर    मानी      न     मैंने     भी  हार न     कभी   झुका   न कभी रुका हूँ पथरीले        से        नहीं    डरा   हूँ दूना        प्रयास      किया    हरबार पर   मानी… Read more »

मदन/रूपमाला छंद [Madan/Roopmala chhnad]

छंद : मदन/रूपमाला विधान :  24 मात्रा, 14,10 पर यति, आदि और अंत में वाचिक   भार 21  कुल चार चरण, क्रमागत दो-दो चरणों में तुकांत देख  उसको  दिल  मचलता, प्रेम  है  या   भोग बोध  मुझको   इसका   नहीं, कौनसा  यह  रोग देख लेता  जब तक   न  मैं, चित्त को कब चैन चाँ… Read more »

ऋतुराज बसन्त(महाशृंगार) Rituraj basant [mahashringar Chhand]

छं द : म हा शृं गा र प्रकृति    सब   झूम  उठी है आज सुगंधित   तन    मन  आँगन द्वार बिछाये    पलकें       बैठी    देख रत्नगर्भा          करने         श्रृंगार पालना    डाले     द्रुम    दल   और पुष्प     ने      पहनाया      परिधान झुलाती    झूला   … Read more »