उत्कर्ष दीप जुगलबंदी - ०२ नहीं होता अशुभ कुछ भी, सदा शुभ ये मुहब्बत है बसाया आपको उर मे, तुम्हीं में आज भी रत है बताऊँ मैं प्रिया कैसे, रहीं जब दूर तुम मुझसे मिलन हो,श्याम श्यामा सा, कहो क्या ये इजाजत है - नवीन श्रोत्रिय उत्कर्… Read more »
उत्कर्ष दीप जुगलबंदी - ०२ नहीं होता अशुभ कुछ भी, सदा शुभ ये मुहब्बत है बसाया आपको उर मे, तुम्हीं में आज भी रत है बताऊँ मैं प्रिया कैसे, रहीं जब दूर तुम मुझसे मिलन हो,श्याम श्यामा सा, कहो क्या ये इजाजत है - नवीन श्रोत्रिय उत्कर्… Read more »
उत्कर्ष जुगलबंदी तुम्हारा देखकर चेहरा, हमें तो प्यार आता है तुम्हारे हाथ का खाना, सदा मुझको लुभाता है बसे हो आप ही दिल मे, बने हो प्राण इस तन के तुम्हारी आँख का काजल, मगर हमको जलाता है नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष तुम्हारी बात पर सज… Read more »
आन बान शान रख, और पहचान इक भारती का वीर रख, अडिग जुबान को काट डाल रार वाली, खरपतवार जड़ चूर कर डाल गिरि, जैसे अभिमान को दीमक लगी हो जित, उत भी नजर डाल देश से बाहर कर, देश द्रोही श्वान को देश की अखंडता के, लिये ये जरूरी यज… Read more »
घर बाहर का मुखिया नर हो और नारि घर भीतर जान दोनों ही घर के संचालक दोनों का ऊँचा है स्थान बात करे जब मुखिया पहला दूजा सुने चित्त ले चाव बात उचित अनुचित है जैसी वैसा ही वह देय सुझाव बिना राय करना मत दोनों चाहे … Read more »
गृहस्थ : छंद - आल्हा/वीर,बृज मिश्रित ------------------------- जय जय जय भगवती भवानी कृपा कलम पर रखियो मात आज पुनः लिख्यौ है आल्हा जामै चाहूँ तेरौ साथ महावीर बजरंगी बाला इष्टदेव मन ध्यान लगाय निज विचार गृ… Read more »
आजाऔ मिलबे सजन, जमना जी के पार तड़प रही हूँ विरह में, करके नैना चार कैसे आऊँ मैं प्रिया, जमना जी के पार घायल मोहे कर गए, तेरे नयन कटार तुम तौ घायल है गए, देख कोउ कौ रूप मैं बैरानिया हूँ बनी, तेरी जग के भूप मै… Read more »
रक्ता छंद [Rakta Chhand ] विधान :- रगण जगण गुरु【212 121 2 】 कुल 7 वर्ण, 4 चरण [दो-दो चरण समतुकांत ] (1) मात ज्ञान दीजिये दूर दोष कीजिये मंद हूँ विचार दो लेखनी सँवार दो (2) मात हंसवाहिनी आप ज्ञान दायिनी … Read more »
कुंडलियाँ Kundaliyan Chhand 【सोमवार】 देवो के वह देव है, भोले शंकर नाम ध्यान धरो नित नेम से, अंत मिले हरि धाम अंत मिले हरिधाम, पार भव के हो जाये मनचाहा सब होय, साथ सुख समृद्धि पाये कहे भक्त उत्कर्ष, ना… Read more »
उड़ियाना छंद Udiyana Or Kundal Chhand उड़ियाना छंद विधान : 12/10 यति पहले व बाद में त्रिकल अंत मे एक गुरु जीवन का ध्येय एक, राम नाम जपना मिले हमें विष्णुलोक,यही सत्य सपना कौन यहाँ मित्र,सगा, बंधु, संबंध है माया का यही जाल, मोह आबंध है… Read more »
कहमुकरी छंद कहमुकरी छंद विधान : प्रतिचरण 15 अथवा 16 - 16 मात्राऐं, क्रमशः दो दो चरण समतुकांत वह भविष्य का है निर्माता पथभ्रष्टी को पथ पे लाता कर्म मार्ग का वही निरीक्षक क्या सखि ईश्वर ? ना सखि शिक्षक … Read more »
उत्कर्ष कवितावली का संचालन कवि / लेखक नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष द्वारा किया जा रहा है। नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष मूल रूप से राजस्थान के भरतपुर वैर तहसील के गांव गोठरा के रहने वाले हैं।
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