कहमुकरी छंद 

कहमुकरी छंद  विधान :  
प्रतिचरण 15 अथवा 16 - 16मात्राऐं, क्रमशः दो दो चरण समतुकांत

वह     भविष्य    का       है   निर्माता
पथभ्रष्टी        को     पथ    पे   लाता
कर्म      मार्ग    का    वही  निरीक्षक
क्या  सखि  ईश्वर ? ना सखि शिक्षक

अज्ञान      मेट      सज्ञान     बनाता
खेल      कूद    भी    वही  सिखाता
नहीं    तनिक    उसके  मन  में  मद
ऐ !  सखि  ईश्वर ?  ना सखि ज्ञानद

अंधकार        को       दूर     भगाता
एक     इसी    में    वह  सुख   पाता
कांति      पुंज   का  है   वह   रक्षक
ऐ  !  सखि दीपक, ना सखि शिक्षक

जाति      पाँति    सब    वही बनाये
झूठ     साँच    के    जाल   बिछाये
एक       वही    जो     लेता    देता
ऐ  सखि ईश्वर ? नहि   सखि   नेता

कभी     कभी  मुझको    दिखता  है
पता     नहीं  वो    क्यों    छुपता  है
भोर     सुहानी      सुनु      जो   शोर
क्या  सखि  साजन, नही  सखि मोर

रोज  -  रोज     सपनो     में    आये
सखी   नित्य    वह    मुझे   सताये
मन   मधुवन     में   करे    वो  शोर
ऐ ! सखि  साजन ?  न   माखनचोर
- नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष



KEHMUKRI-CHHAND KA VIDHAN OR UDAHARAN