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उत्कर्षदीप जुगलबंदी - ०२ )

उत्कर्ष  दीप   जुगलबंदी - ०२  नहीं  होता  अशुभ  कुछ  भी, सदा  शुभ ये मुहब्बत है बसाया    आपको   उर    मे, तुम्हीं में आज भी रत है बताऊँ     मैं    प्रिया    कैसे, रहीं जब दूर तुम  मुझसे मिलन हो,श्याम श्यामा सा, कहो क्या ये  इजाजत है - नवीन श्रोत्रिय उत्कर्… Read more »

उत्कर्षदीप जुगलबंदी [आधार विधाता छंद]

उत्कर्ष   जुगलबंदी तुम्हारा    देखकर  चेहरा, हमें  तो  प्यार  आता है तुम्हारे  हाथ   का  खाना, सदा मुझको  लुभाता है बसे हो आप  ही  दिल  मे, बने हो प्राण इस तन के तुम्हारी आँख का काजल, मगर  हमको जलाता है नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष तुम्हारी  बात  पर   सज… Read more »

मुक्तक : हिन्दू,हिंदी,हिंदुस्तान

मुक्तक : हिन्दू,हिंदी,हिंदुस्तान जय - जयकार  करेगी  दुनिया,हिंद   वीर  मतबारों की अडिग हिमालय सी हिम्मत है,आदत  नही  सहारो की ठान   लिया   हमने  हिंदी  को,शीर्षस्थ      पहुंचाना  है जग   में   केवल  हिंदी   होगी,हिंदी राज   दुलारों   की  Muktak Read more »

मुक्तक :दिल से...

नजारों में  कहाँ  अब  हम,नहीं  पहचान  पाओगे । मगर  जिंदा  अभी हम हैं,कभी  तो जान जाओगे । भुला सकते नहीं हमको,भगत हम श्याम के ठहरे । चले   आयेंगे   यादों   में,भजन जब आप गाओगे ।। नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष श्रोत्रिय निवास बयाना +91 9549899145 Read more »

देशहित में आह्वान (मुक्तक )

बहुत     हुआ   मोदीजी   लेकिन,अब  बातों में सार नही । खामोशी    को     साधे    रहना,वीरों    का    श्रृंगार नही । मारो   इनको    या   दुत्कारो,ये    लातों    के   भूत    रहे । बहुत कर लिया अब तक लेकिन,अब कुत्तों से प्यार नही । Read more »

मुक्तक : 1222×4

लिए  कंचन  सी' काया  वो,उतर  आई  नजारों  में । करें   वो   बात  बिन  बोले,अकेले   में   इशारो  में । बिना देखे कही पर भी,मिले नहिं चैन अब मुझको ।         गगन  के  चाँद  जैसी  वो,हसीं  लगती  हजारों  मे । ===============≠=============== बसे हो इस कदर दिल में,भु… Read more »

मुक्तक : 06

(1) फिरो क्यों  फेसबुक पर  ढूँढते  तुम प्यार को यारो । मिले सच्चा यहाँ फिर कब,सुनो सब इश्क के मारो । रही  ये  फ़ेसबुक  जरिया,जुडो  इक दूसरे  से  तुम । मगर मतलब  ज़माना  है,इसे  भी  जान लो प्यारो ।। (2) जमाना है बड़ा  जालिम,समझ दिल को न पाता है । रखे यह स्वार्थवश रि… Read more »

मुक्तक : 05

आपका इंतज़ार ------------------------ बिठा कर हम निगाहों को,किये इन्त'जार बैठे है । मचलता है कि पागल मन,लिए हम प्यार बैठे है । तमन्ना  इक  हमारी   तुम,रही  कब दूसरी  कोई । चली आओ सनम अब हम,हुए  बेक'रार बैठे  है । फ़ेसबुक और प्यार ------------------------… Read more »

मुक्तक माला

मुक्तक माला  प्रेम      को    मन      में       तुम       अब     जगह   दीजिये नफरतो    को     न     अब      यूं     हवा    दीजिये मुश्किलो     से     मिला  है   इं सा     का   जनम इस     जनम     को   न   तुम  यूं    गवाँ  दीजिये … Read more »

मुक्ततावली आधार विधाता छंद [muktawali]

लिए कंचन सी ' काया वो , उतर आई नजारों में । करें   वो बात   बिन बोले , अकेले   में   इशारो में । बिना देखे कही पर भी , मिले ना चैन अब मुझको , गगन के चाँद जैसी वो , हसीं लगती हजारों मे । ===================== सभी करते म… Read more »

मुक्तक : ०५

मुक्तक : 2212 1222 212 122 वो   दूर   जा   रहे   तो,हम  दूर  हो  गये है । उनकी खुशी की खातिर मजबूर  हो गये है । है  बेवफा  जमाना  हम   जानते   नही   थे । कर   प्यार  बेवफा  से  मशहूर  हो  गए  है । (२) कर प्रेम राधिका सा,मोहन     हमे     बनाना । हो वाय… Read more »