!! विदाई गीत - VIDAI GEET !! छोड़ गई क्यों साथ हमारा, सूनी छोड़ कलाई किससे लाड़ लड़ायेंगे हम, कौन कहेगा भाई ओ प्यारी बहिना,ओ मेरी बहिना... बचपन की यादों का दर्पण, तडप जगायें भारी पलकें भारी हो जाती जब, आये याद तुम्हारी रक्षाबंधन … Read more »
!! विदाई गीत - VIDAI GEET !! छोड़ गई क्यों साथ हमारा, सूनी छोड़ कलाई किससे लाड़ लड़ायेंगे हम, कौन कहेगा भाई ओ प्यारी बहिना,ओ मेरी बहिना... बचपन की यादों का दर्पण, तडप जगायें भारी पलकें भारी हो जाती जब, आये याद तुम्हारी रक्षाबंधन … Read more »
===== उत्कर्ष कृत दोहे ==== गजमुख की कर वंदना,धर शारद का ध्यान । पञ्च देव सुमिरन करूँ,रखो कलम का मान ।। ==============≠==== ईश्वर के आशीष से,दूने हो दिन रात । बिन मांगे सबको मिले,मेरी यही सौगात ।। =================== अधर गुलाबी मधु भरे,तिरछे नैन कटार… Read more »
आरक्षण Aarakshan/Reservation (गीत) आरक्षण का दानव खाता, हक मेरे जीवन का फिर भी खुद को भूखा कहता, शायद यत्न हनन का आरक्षण का दानव खाता, हक मेरे जीवन का...... अर्थ स्थिति डामाडोल पर, नहीं रियारत मुझे मिली वर्षो से उ… Read more »
विधान : कहमुक़री चार चरणों में लिखी जाती है,जिसके प्रत्येक चरण का मात्रा भार 15-15 अथवा 16 -16 होता है । सुबह शाम मैं उसे रिझाऊँ, नैन पलक पर जिसे बिठाऊँ बिन उसके दिल है बेहाल, क्यों सखि साजन?ना गोपाल घड़ी - घड़ी मैं राह निहारूँ सुबह शाम नित उसे पुकारूँ… Read more »
गजल : प्रेम पढ़ता रहा नित्य ही [Gazal : Prem Padta Raha Nitya Hi] बह्र : 212 212 212 212 प्रेम पढ़ता रहा नित्य ही मीत मैं सीख पाया नहीं बाद भी प्रीत मैं हार से हार कर हारता ही गया पर न जाना कभी हार क्या जीत मैं … Read more »
चल पड़े है कौन से पथ Chal Pade Hain Kaunse Path मापनी/बहर : 2122 2122 2122 212 चल पड़े है कौन से पथ, भूल हम जीवन चले जानते इसको सभी पर, संग में बेमन चले स्वप्न बुनते नित नये हम हो सुखद संसार इक पर निगाहों में बसा के ढ… Read more »
छन्द : रोला ----------------- लिये हरित परिधान,धरा पर पावस आयी । शीतल चली बयार,उष्णता है शरमायी । भरे कूप अरु कुंड,नीर सरिता भर लायी । जन,जीवन,खुशहाल,ऋतु वर्षा मन भायी ।। - नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष” श्रोत्रिय निवास बयाना Http://NKUtkarsh.Blogspot.c… Read more »
जिंदगी के अंत तक,कष्ट के ज्वलन्त तक, रोम रोम मेरा परशुराम गीत गयेगा । विप्र अनुराग मेरा,विप्र मन राग मान, विप्र वंदना में मन,डूबता ही जायेगा । विप्र परिवार मेरा,विप्र व्यवहार मेरा, विप्र हूँ ये सोचकर,अरि घबरायेगा । जिंदगी,उत्कर्ष यह,विप्र कुल गौरव की, जिस दिन मा… Read more »
उत्कर्ष कवितावली का संचालन कवि / लेखक नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष द्वारा किया जा रहा है। नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष मूल रूप से राजस्थान के भरतपुर वैर तहसील के गांव गोठरा के रहने वाले हैं।
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