आ• शैलश्री..श्लेषा जी की कलम से..

आदरणीय नवीन जी सबसे पहले इतनी कम उम्र में की गई साहित्यिक तरक्की के लिए तहे दिल से हार्दिक अभिनंदन, आपने लेखन विधाओं को जानकर खुशी हुई कि आप साहित्य के अनेक विधाओं पर अपना हाथ आजमाए हैं । आपकी रचनाओं की प्रकाशन के लिए फिर से एक बार अभिनंदन स्वीकार कीजिए । आपकी पहली रचना में जीवन के प्रति आशा कूट कूट कर भरी हुई है । दिनकर चढ़ आया तो तम को दूर भागना ही है ।नर और नारी का संदेश सब अन्य नरों को पहुचाने का यह उत्तम मार्ग है । मानव को कर्म से मतलब रखना चाहिए न कि चिंता करते हुए उसी में जल जाना नहीं है । सोच समझकर आगे बढ़नेवाली बात आपके व्यक्तित्व की पहचान सबको कराती है । आपकी दूसरी कविता राजस्थानी और उसकी परदेशी प्रियतमा के बीच का जो वार्तालाप चला है वह बेहतरीन पंक्तियों से भरी परिपूर्ण कविता का निदर्शन है । राजस्थान की खूबसूरती को पाठकों तक पहूंचाने की अच्छी प्रयास आपकी कविता में दिखाई देती है । वाह शब्दों की जोड़ ऐसी मजबूत है कि कविता पढ़ने वाले "वाह, वाह" कहे बिना रह नहीं पाता । राजस्थान धन्य हो गई । सिर्फ राजस्थान की धूप के बारे में सुने थे । पर आपकी रचना से उसकी सुंदरता भी जान पाए ।
बहुत सुंदर कविता । आपकी कीर्ति ऐसे ही बढ़ती जाए, एक सफल साहित्यकार बनिए । यहीं आशय है मेरी । धन्यवाद आदरणीय नवीन जी ।
समीक्षक-शैलश्री श्लेषा

Utkarsh Kavitawali
Writes Review-Shail Shree Shlesha