आपकी समीक्षा : सम्मानिया जय श्री शर्मा जी

!! सा•जय श्री शर्मा जी की कलम से !! आ. नवीन जी का परिचय पढ़कर लगा कि कितनी कम उम्र में वे साहित्य के क्षेत्र में इतना आगे बढ़ गये हैं बहुत बहुत बधाई आ. नवीन जी को अपनी प्रथम रचना में सुबह सवेरे वे बहुत ही सुंदर संदेश दे रहें हैं अच्छे कर्म करके ही मनुष्य अपनी किस्म… Read more »

आपकी समीक्षा - श्री मुरारि पचलंगिया जी [ Writes Review By Murarilal Pachlagiya ]

!! आ• श्री मुरारि पचलंगिया जी  जी की कलम से   !! एक उभरते हुए रचनाकार के रूप में  हमारे सर्वप्रिय भाई नवीन शर्मा श्रोत्रिय   इस मंच के लिए एक सुन्दर सौगात के रूप में हैं । हमें गर्व है ऐसे साथी को पाकर । इनकी रचनाओं में विविधता, गम्भीरता, सरसता सभी गुण विद्यम… Read more »

आपकी समीक्षा : सा• वाणी बरठाकुर विभा जी [ Writes Review By Vaani Thakur Vibha ]

समीक्ष का  : सा• वाणी बरठाकुर "विभा" ========================= वाणी बरठाकुर विभा जी आदरणीय नवीन शर्मा श्रोत्रिय उत्कर्ष जी से आज सम्पूर्ण रूप से परिचित होकर बहुत अच्छा लगा । इतने कम उम्र में आप साहित्य क्षेत्र में इतने आगे बढ़ता हुआ देख कर मुझ… Read more »

सीमायें

सीमायें : Border  छंद : तांटक, रस-वीर,गुण-ओज -------------------------------------- खादी  पहने घूम रहे कुछ, जो चोरो   के   भाई   हैं ऐसे लोगो के  कारण  ही,दुख  की  बदली छाई  हैं चेत करो अब सोये शेरो,इन्हें सबक सिखलाना है नमक हरामी करने वालो,को मतलब बतला… Read more »

छंद : आल्हा/वीर (Aalha/Veer)

सुमिरू तुमको हंसवाहिनी,मनमोहन,गुरुवर, गिरिराज । पंचदेव,  गृहदेव,  इष्ट  जी,मंगल  करना   सारे  काज ।। बाल नवीन करे विनती यह,रखना   देवो   मेरी   लाज । उर भीतर के भाव लिखूँ मैं,आल्हा छंद  संग ले आज ।। देश,वेश,परिवेश बदल दो,सोच बिना कछु नही सुहाय । मधुर बोल मन … Read more »

एक सुंदरी : श्रृंगार रस

छंद : मत्तग्यन्द सवैया ------------------------------- जोगिन एक मिली जिसने चित, चैन चुराय  लिया चुप  मेरा । नैन  बसी  वह   नित्य  सतावत, सोमत  जागत डारिहु  घेरा । धाम कहाँ उसका  नहिं  जानत, ग्राम, पुरा, बृज माहिंउ हेरा । कौन  उपाय करूँ  जिससे वह, मित्र  करे  … Read more »

संयोग श्रृंगार : मत्तग्यन्द सवैया

छंद : मत्तग्यन्द सवैया ------------------------------- नैनन   ते   मद  बाण  चला,              मन भेद गयी  इक नारि निगोरी । राज किया जिसने  दिल पे,              वह  सूरत  से  लगती बहु भोरी । चैन गयो फिर  खोय  कहीँ,              सुधि बाद रही हमकूँ कब थोरी । प्रे… Read more »

मरुभूमि और महाराणा [ Marubhoomi Or Maharana ]

★★मरुभूमि और महाराणा★★ पंद्रह    सौ   चालीसवाँ, कुम्भल राजस्थान जन्म हुआ परताप का, जो  माटी  की शान माता जीवत कँवर औ, तात उदय था नाम पाकर  ऐसे   वीर  को, धन्य हुआ यह धाम पन्दरा सौ अड़सठ  से, सत्तानवे  के  बीच अपने ओज प्रताप  से, मेवाड़   दिया  स… Read more »