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भोर भयी दिनकर चढ़ आया । दूर हुआ तम का अब साया ।। कर्मवीर तुम अब तो जागो । लक्ष्य साध यह आलस त्यागो ।। हार जीत सब कर्म दिलाता । ध्यान धरे वह मंजिल पाता ।। हार कभी न कर्म पर भारी । यह सब कहते नर अरु नारी ।। कर्म बड़ा है भाग्य से,लेना इतना जान । क… Read more »
लिए कंचन सी' काया वो,उतर आई नजारों में । करें वो बात बिन बोले,अकेले में इशारो में । बिना देखे कही पर भी,मिले नहिं चैन अब मुझको । गगन के चाँद जैसी वो,हसीं लगती हजारों मे । ===============≠=============== बसे हो इस कदर दिल में,भु… Read more »
उसका निखरा रूप था,नागिन सम थे बाल । घायल करती जा रही,चल मतवाली चाल ।। चन्द्र बदन कटि कामनी,अधर एकदम लाल । नयन कटारी संग ले,करने लगी हलाल ।। जबसे देखा है तुझे,पाया कहीं न चैन । प्रेम रोग ऐसा लगा,नित बरसत ये नैन ।। प्रीतम से होगा मिलन,आस भरे द… Read more »
शीर्षक : भोर(कविता) ________________________________ स्वप्न सजाये जो पलको पर, पूरा उनको,तुम अब कर लो, भोर भया, मिट गया अँधेरा, तुम मंजिल को फिर वर लो, स्वप्न सजाये जो पलकों पर, पूरा उनको तुम अब कर लो आलस को त्यागो, बढे चलो, मन में लोे ठान,दृढ़संकल्प हो मे… Read more »
हिंदी वाले हिन्द में,सब मिल रहते साथ | फिर हिंदी में क्यों नही,होती दिल की बात ||१|| देवनागरी मे लिखो,मन भीतर जो प्रीत | हिंदी में फिर गाइये,मधुर मिलन के गीत ||२|| हिन्द देश की है बनी,हिंदी ही पहचान | निज भाषा में बोल कर,रखो देश का मान ||३|… Read more »
प्रेम हृदय में धारिये,प्रेम रत्न यह ख़ास । जहाँ प्रेम का वास है,वही प्रभो का वास ।। ब्रह्मदेव के पुत्र है,ब्रह्म बना आधार । परशुराम सम तेज है,यह ब्राह्मण का सार ।। राजपूत राजा बने,मिला दिव्य जब ज्ञान । मैं ब्रह्मा का पुत्र हूँ,अब तो मुझको जान ।।… Read more »
छंद : मत्तग्यन्द सवैया _______________________________ पाप बढ़े जिससे वसुधा,प्रभु नित्य कँपे यह संकट टारो । मान मिले नहिं मात-पिता,मद मोह बसो सुत है मतबारो । गाय मरे अब नित्य यहाँ,यह मानवधर्म अधर्म सम्हारो । आप गये सगते कह कें,फिर केशव आकर सृष्ट… Read more »
(1) फिरो क्यों फेसबुक पर ढूँढते तुम प्यार को यारो । मिले सच्चा यहाँ फिर कब,सुनो सब इश्क के मारो । रही ये फ़ेसबुक जरिया,जुडो इक दूसरे से तुम । मगर मतलब ज़माना है,इसे भी जान लो प्यारो ।। (2) जमाना है बड़ा जालिम,समझ दिल को न पाता है । रखे यह स्वार्थवश रि… Read more »
*वसुमति छंद* [तगण,सगण] ------------------- तू ही जगत में, तू ही भगत में, है वास सब में, हूँ बाद जब मैं, ----------------- ------------------- आधार तुम ही, हो सार तुम ही, ये पार तुम ही, … Read more »
चल रहे जिस पथ , मारग है नीति का वो , आगे अभी बाकी सारा , आपका ये जीवन , कोण घडी जाने आवे , संकट को लेके साथ , मजबूत कर आज , अब अपना मन , हार मत देख काम , लगा रह अविराम , कर … Read more »
मौत के डर से, क्यों? तुमने जीना छोड़ दिया, तू मेहनकश है,फिर रुख क्यों न मोड़ दिया, ये तो एक अटल सत्य है,आखिर होकर ही रहेगा, क्या आज,एक और सत्य ने,इंसान को तोड़ दिया , सुना था मैंने,इतिहास गवाह है,है ये वीरो की भूमि, उन वीर सपूतों ने,अच्छे-अच्छो को मरोड़ दिया, जीन… Read more »
मेरी जिंदगी मझदार में है , अब कैसे पार उतारू .... सोचता पल पल यही में , कैसे खुद को निकालूँ .... वक़्त भी कम है पड़ा अब , कौन वो जिसे पुकारू .... मेरी जिंदगी मझदार में ........... २ यहाँ वहां सब अपने लगते , झूठा मन… Read more »
उत्कर्ष कवितावली का संचालन कवि / लेखक नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष द्वारा किया जा रहा है। नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष मूल रूप से राजस्थान के भरतपुर वैर तहसील के गांव गोठरा के रहने वाले हैं।
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