उत्कर्ष पदावली

रे ! मूरख क्यों तू स्वांग रचावै

रे ! मूरख क्यों तू स्वांग रचावै  रे !  मूरख क्यों तू स्वांग रचावै

जैसी    करनी       वैसी    भरनी  करनी     का    फल   पावै


रे मूरख करनी का फल पावै

रे ! मूरख क्यों तू स्वांग रचावै  रे !  मूरख क्यों तू स्वांग रचावै

हाड़       माँस    की   कोरी   काया   देख  -   देख       इतरावै

रे  मूरख  देख - देख इतरावै


धोय   पखारै     बड़े   जतन    ते   पल  -    पल   खूब   समारै

तेल - इत्र  नाना   विधि  चुपरै     नित  - नित  चाम   निखारै

क्यों तू स्वांग रचावै रे मूरख    रे ! मूरख  क्यों तू स्वांग रचावै

जैसी   करनी   वैसी     भरनी      करनी    का     फल   पावै

 

काम,   दाम,  उत्कर्ष      नाम   हो     कैसेऊँ       मिल     जावै

बिगरै    उमरिया     तीन    के    पीछे  मन   बैरी      यह  चाह्वै

रे  मूरख मन  बैरी यह  चाह्वै

क्यों तू स्वांग रचावै रे    मूरख  रे ! मूरख क्यों तू स्वांग रचावै

 

बीती  उमर   नैनन      के  मद   में    तबहूँ  चैन          आवै

धन  के  पीछे     भूल     धनी   कूँ    खुद   कूँ    आप   लजावै

 

चार दिवस     जीवन   की  बगिया   कौन  घड़ी         मुरझावै

प्रेम,  दया   अंतस्    में      भरलै    हरि    ते     यही     मिलावै

रे ! मूरख क्यों तू स्वांग रचावै  रे !  मूरख क्यों तू स्वांग रचावै

जैसी    करनी       वैसी    भरनी  करनी     का    फल   पावै

नवीन  श्रोत्रिय  उत्कर्ष

श्रोत्रिय निवास बयाना

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रे ! मूरख क्यों तू स्वांग रचावै
रे ! मूरख क्यों तू स्वांग रचावै