खोज कलम हे ! कलमवीर

कहाँ  लेखनी  है  वो  अब  जो, लिखे   वीरता    वीरों  की
लिखे न अब क्यों रही व्यथा जो,जनमानस की पीरों की
आखिर  इसको  किसने  रोका, क्यों ये  इतनी बाध्य हुई
कौन  टोटका  हुआ   बताओ, क्या  ये कहो, असाध्य हुई

कौन  लगाया  बोली  इसकी, किसने इसका मोल किया
किसने इसके   बंधन   बाँधे, किसने  इसको  तोल दिया
कौन छुपा   कर  बैठा   असि  ये, जो  करती इंसाफ सदा
नहीं  किसी  से   डरने   वाली, किधर गयी बलवान गदा

नहीं प्रशंसा की  दासी   औ, नहीं  लोभ   उर   रखती  थी
जो  जैसा   परिदृश्य  रहा   वो, सदा सत्य से लिखती थी
थर्राते     पूँजीपति,   जुल्मी,    सुनकर      उसके    बोल
खोज   कलम, हे  !   कलमवीर, फिर   वो   स्याही  घोल
Oj gun ki rachna
Khoj kalam he kalamveer