तर्ज : सिया रघुवर जी के संग
विधा : पैरोडी, शृंगार [संयोग]
मिली सपनेन में गोरी रात.......
...........दिखावै लगी, नये नये
...........दिखावै लगी सपनेहुँ रे
रख हाथन पे दोउ हाथ........
...........दिखावै लगी, नये नये
...........दिखावै लगी सपनेहुँ रे
मिली सपनेन में गोरी रात......
रूप रूपसी कौ कछु वर्णन
देख्यौ जबते है विचलित मन
किस विधि गढ्यौ विधाता जानै
लीला उसकी , बिन उपमानै
अजब अनूठी जगत रचयिता
की जग कूँ सौगात..........
...........दिखावै लगी नये नये
...........दिखावै लगी सपनेहुँ रे
मिली सपनेन में गोरी रात.......
माथे ऊपर गर्वित इकली
कुंकुम की प्यारी सी टिकुली
अधर सुर्ख अरु वनज विलोचन
नयनों में पहरे पर अंजन
पलक खुले लगै दिन ऊग्यौ
मूँदत मानो रात.............
...........दिखावै लगी नये नये
...........दिखावै लगी सपनेहुँ रे
मिली सपनेन में गोरी रात.......
सावन घन ज्यों कारे कुंतल
श्रुति में मतबारे से कुंडल
कंठहार की शोभा न्यारी
रत्नजड़ित चहुँ ओर किनारी
झूमें ऐसे नाक नथुनियाँ
जैसे हो पूर्वी वात.........
...........दिखावै लगी नये नये
...........दिखावै लगी सपनेहुँ रे
मिली सपनेन में गोरी रात.......
हाथन में सोने के कंगन
दमकै ऐसै ज्यों हो दर्पन
मुंदरी ते शोभित है अंगुरिया
पहन के आई जरी चुनरिया
चन्द्र चकोरी की कौमुदी सी
उजली उजली गात.......
...........दिखावै लगी नये - नये
....... . दिखावै लगी सपनेहुँ रे
मिली सपनेन में गोरी रात.......
मिल बैठे नैनन ते नैना
इन बाणन ते कोउ बचैना
प्रेम उमड़ जियरा में आयौ
अंग तरंग नवीन बनायौ
भाव - भंगिमा कि क्रिया में
होने को सुप्रभात
...........दिखावै लगी नये - नये
....... . दिखावै लगी सपनेहुँ रे
मिली सपनेन में गोरी रात.......
वर - वधु बनें प्रतिज्ञा कीन्ही
चित्त मोहनी छवि हर लीन्हीं
मङ्गल क्षण में लगन चढाई
मँगनी अर्ध विवाह कहाई
स्वप्न सजी उस दुल्हन को ले-
-ने आयी बारात.......
...........दिखावै लगी नये - नये
....... . दिखावै लगी सपनेहुँ रे
मिली सपनेन में गोरी रात.......
चन्द्र - चाँदनी साक्षी माने
लगे ब्याह खद्योत पढ़ाने
वैवाहिक सब रश्म निभाईं
मङ्गलकारी क्षण को लाईं
चार अगारी तीन उलट में
परी भमरिया सात......
...........दिखावै लगी नये - नये
....... . दिखावै लगी सपनेहुँ रे
मिली सपनेन में गोरी रात.......
हम दोनों ज्यों दीपक बाती
इक दूजे के पूरक साथी
जन्म - जन्म का साथ हमारा
तुम सा और कोई न प्यारा
वादा है तुमसे ये मेरा.............
कभी न छोडूं साथ......
...........दिखावै लगी नये - नये
....... . दिखावै लगी सपनेहुँ रे
मिली सपनेन में गोरी रात.......
यों बोली हमरी ठकुरानी
भायी मन को मृदु यह बानी
स्नेहबोल प्रभाव है पैना
बात - बात में बीती रैना
उथल-पुथल हुई भ्रमजाल के
खुल गये बन्द कपाट......
...........दिखावै लगी नये - नये
....... . दिखावै लगी सपनेहुँ रे
मिली सपनेन में गोरी रात.......
नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष”
श्रोत्रिय निवास बयाना
ले•स• १८-०२-२०२०
2 Comments
वाह वाह नवीन जी, इतना सुंदर गीत
ReplyDeleteमैं इसकी तारीफ कर सकूँ इतनी क्षमता नहीं है ये तो सूर्य को दीपक दिखाने जैसा होगा। उपयुक्त शब्द नहीं हैं मेरे पास।
मालती जी स्नेहिल शब्दों में सराहना एवं उनके द्वारा उत्साहवर्धन करने के लिये हार्दिक आभार,
Deleteयह सब आप लोगों का सानिध्य व स्नेह है जो मुझे सतत प्रेरित करता है, मार्गदर्शित करता है एवं पोषित करता है । मैं आभारी हूँ आपका
Post a comment
Please Comment If You Like This Post.
यदि आपको यह रचना पसन्द है तो कृपया टिप्पणी अवश्य करें ।