तांटक छंद : Tantak Chhand  

चोरी    छिपकर   वार   किया है,
जिन नापाकी श्वानों ने ।
कभी न उनको सबक सिखाया,
गाँधीवादी    गानों   ने ।

मार्ग    अहिंसा   का   अपनाना,
कलयुग में कायरता  है ।
जो  इसको   अपनाता   है  वह,
कायर  जैसे   मरता है ।

कितनी कोख उजाड़ी अरि ने,
कितनों का सिंदूर मिटा ।
हिन्द    बसंती    बागानों  का,
नित्य नित्य सौंदर्य घटा ।

मगर  नहीं   है   लज्जा  आई,
गूँगी   बहरी  खादी  को ।
कोई  ऐसा  जतन    करे  जो,
रोक  सके  बर्बादी   को ।

डूब शर्म और  पश्च्याताप  में,
थोड़े भी जो कदम बढ़े ।
उन्हें रोकने,  घर  भीतर   के,
द्रोही  अरु  गद्दार  खड़े ।

घात  लगाकर  गीदड़  बैठा,
नहीं  जाल  में  फँसना  है
बहुत हुआ धीरज को धरना
अब करना, जो करना  है

नहीं   चाहिये   हमें  और  कुछ,
बाहर  सब  गद्दार करो ।
शत्रु को शक्ति दिखलाओ अरु,
उनका अब संहार करो ।
: क्रमशः.....

- नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष
utkarsh kavitawali
बदला लो