कैसे तुझको कवि में कह दूँ
कैसे दूँ सम्मान रे
छंद अलंकार का मर्म न जाने
न जाने विधि विधान रे
कैसे तुझको कवि में कह दूँ
कैसे दूँ सम्मान रे
काव्य के तू गुण दोष न जाने
न काव्यशास्त्र का ज्ञान रे
शब्दों की तू महत्ता न जाने
न जाने तू संज्ञान रे
कैसे तुझको कवि में कह दूँ
कैसे दूँ सम्मान रे
हँसी ठिठोली करता डोले
तेरा मुक्त रीति परिधान रे
कलम से तू अनभिज्ञ और तू
लेखन से अनजान रे
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