छन्द : मंजुभाषिणी

[सगण+जगण+सगण+जगण+गुरु]

चल आ गये हम कहाँ,नही  पता
अब   राह  केशव  हमे,तुही  बता
हम नेह  के  सुमन  है,रहे  खिले
उतरे   भवांबुधि   परे,कृपा मिले
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नवीन   श्रोत्रिय    "उत्कर्ष"
 श्रोत्रिय निवास बयाना,राज•
manjubhashini chhand ka vidhan or udaharn
manjubhashini chhand