!! ममता का आशीष [Mamta Ka Ashish] !!
गहरी नींद में,कुछ शोर सुनाई दिया । सुबह-सुबह ये कौन शोर मचा रहा है ?
मन ही मन गुस्सा आ रहा था । अभी तो आँख लगी थी, सुबह इम्तिहान था इसलिए देर रात तक पढ़ाई की थी। पिताजी को छोड़कर घर के सारे सदस्य सुबह देर से उठते है , उनको सुबह ड्यूटी के लिए तैयार होना पड़ता है । वो सरकारी विद्यालय में बाबू है , मन मारके खड़ा होना पड़ा, देखा तो ये शोर माँ की आवाज़ का था ,जो मुझे जगाने का यत्न कर रही थी, हाथ में चाय का प्याला लिए हुए , मेरी तरफ आ रही थी, में उनको देखकर आश्चर्य में पड़ गया, में बोला माँ कही जाना है क्या जो आज इतनी जल्दी उठ गयी, माँ बोली हाँ जाना है , मगर मुझे नहीं , तुझे इम्तिहान देने ! एक पल के लिए जैसे मेरी सांसे थम सी गयी, की मेरा इम्तिहान होने की वजह से मुझे तो जागना पड़ता है। मगर मुझसे ज्यादा माँ को फिकर है , मैं उवासी भरते हुए नहाने चला गया, मेरे तैयार हो कर आते ही माँ ने खाना तैयार कर दिया, आ जाओ बेटा खाना लगा दिया है । मैं खाना खा रहा था , माँ कह रही थी ध्यान से अपना एडमिट कार्ड और पेन भी रख लेना। में अब खाना खा चुका था। बस अब घर से कॉलेज निकलना था, माँ ये क्या है, में बोला - ये सब अब कहाँ होता है पहले होता था ऐसा, माँ एक कटोरी में दही- शक्कर ले कर आई थी। अपने हाथों से दही - शक्कर खिलते हुए बोली , शुभ काम को करने से पहले कुछ मीठा मुँह करते है । और बोली अपना इम्तिहान अच्छे से देना, आगे ईश्वर की मर्ज़ी है। जैसे ही में माँ का आशीर्बाद लेने के लिए पैरों को छूने लगा, माँ ने अपने सीने से लगा लिया , मेरा कालेज जाने का समय हो चुका था , में घर से निकल रहा था, एक नज़र माँ की और देखा तो लगा उसकी ममता भरी आँखें मुझे अब भी आशीष दे रही थी।
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