जब - जब कुछ भी सोचु मैं,
बस नाम तुम्हारा आता है,
ये प्यार भी कितना पागलपन है,
क्यों इतना तड़पता है,
क्यों इतना तड़पता है,
हो जाता है जब इश्क़ किसी से,
न कुछ भी पता रह पाता है ,
न कुछ भी पता रह पाता है ,
न कुछ भी पता रह पाता है,
बस उसकी बातों की,उसके ख्यालों की,
बस उसके नज़ारो की,
बस उसके नज़ारो की,
एक भीनी खुशबू भर जाता है,
ये प्यार भी कितना पागलपन है,
क्यों इतना तड़पता है,
क्यों इतना तड़पता है,
कोई होता है जो गैर कभी,
कब अपना बन जाता है,
कब अपना बन जाता है,
ये प्यार भी कितना पागलपन है,
क्यों इतना तड़पता है,
क्यों इतना तड़पता है,
जब - जब मिलता उस हम-दम से,
जाने क्यों ? जाने क्यों ?
जाने क्यों ? जाने क्यों ?
जाने क्यों इतना शर्माता है।
ये प्यार भी कितना पागलपन है,
क्यों इतना तड़पता है,
क्यों इतना तड़पता है,
न है खुद की खेर-ओ - खबर,
जाने कब सोया कब जग जाता है,
जाने कब सोया कब जग जाता है,
ये प्यार भी कितना पागलपन है,
क्यों इतना तड़पता है,
क्यों इतना तड़पता है,
शर्मा करना न तू कभी दिल्लगी ,
ये दर्द बहुत दे जाता है,
ये दर्द बहुत दे जाता है,
जब कोई टूटे चीज़ प्यार की,
जी मर-मर जाता है,
जी मर-मर जाता है,
ये प्यार भी कितना पागलपन है,
क्यों इतना तड़पता है,
क्यों इतना तड़पता है,
टूटे गया जो धागा प्रेम का ,
फिर वो जुड़ नहीं पाता है,
फिर वो जुड़ नहीं पाता है,
क्यों उसको बैचैन है इतना ,
जो तुझको नहीं अपनाता है,
जो तुझको नहीं अपनाता है,
- नवीन के श्रोत्रिय
श्रोत्रिय निवास, बयाना
0 Comments
Post a comment
Please Comment If You Like This Post.
यदि आपको यह रचना पसन्द है तो कृपया टिप्पणी अवश्य करें ।