दोहा छंद लेबल वाली पोस्ट दिखाई जा रही हैंसभी दिखाएं

उत्कर्ष दोहावली [UtkarshDohawali]

उत्कर्ष दोहावली   [UTKARSH DOHAWALI)  दोहा छंद विधान : तेरह ग्यारह मात्रा भार के चार चरण प्रत्येक ग्यारहवीं मात्रा वाला वर्ण लघु , समचरण तुकांत राधेश्याम     कृपा    करो, काटो   भव  के फंद तबहि मजा ब्रज बास कौ, और   मिले   आंनद गिरिधर  तेरे   ही   … Read more »

उत्कर्ष दोहावली [UTKARSH DOHAWALI]

उत्कर्ष दोहावली   [UTKARSH DOHAWALI] पेड़    हुये   कंक्रीट  के, उजड़े      वन     उद्यान सन्नाटा अब व्योम में, नहीं   मधुर  खग   गान कण कण में वह व्याप्त है, हर कण उसका जान खोल  नयन “उत्कर्ष” फिर,  कर  उसकी  पहचान जन्म सफल करलो सभी, कर… Read more »

कृष्ण-राधिका संवाद (दोहे)

आजाऔ मिलबे सजन, जमना जी के पार तड़प रही   हूँ  विरह में, करके   नैना  चार कैसे  आऊँ   मैं   प्रिया, जमना  जी के पार घायल  मोहे  कर   गए, तेरे   नयन   कटार तुम  तौ  घायल है गए, देख  कोउ कौ रूप मैं  बैरानिया  हूँ   बनी, तेरी  जग   के  भूप मै… Read more »

दोहे [doha]

पालीथिन    से   मर रही, गायें  रोज़  हज़ार । बन्द करो उपयोग अब, नही जीव को मार ।। वर्षो  तक    गलता नही,नही नष्ट जो होय । दूषित पर्यावरण करे,नाम पॉलिथिन सोय ।। कपडे   का थैला रखो,छोड़ पॉलिथिन आज । वर्षो   तक गलता नही,दूषित करे समाज ।। मांग   भरी … Read more »

Doha Chhand / दोहा छंद

===== उत्कर्ष कृत दोहे ==== गजमुख की कर वंदना,धर शारद  का  ध्यान । पञ्च देव सुमिरन करूँ,रखो कलम का मान ।। ==============≠==== ईश्वर   के  आशीष  से,दूने  हो दिन  रात । बिन मांगे  सबको मिले,मेरी यही सौगात ।। =================== अधर  गुलाबी मधु भरे,तिरछे  नैन  कटार… Read more »

कविता और चोरी

दोहा ----- लेख    भले  ही चोर लो,कला न पावें चोर लिखना मेरा कर्म है,समझ सके कब ढोर रोला ------ समझ सके कब ढोर,काम भूसा से रहता । कुछ गुण रहे विशेष,चोर चोरी तब करता । सुनो “सुमन उत्कर्ष”,हवा से ही पात हलें । चोरी सकें  न रोक ,छुपा   लो   लेख भले… Read more »

मेरा देश मेरा भारत [doha or chaupai]

"मेरा देश-मेरा भारत" रहमान  संग  में  यहाँ,ईसा,  नानक, राम । वीरों  की जननी यही,भारत इसका नाम ।। विश्व पटल पर छाया न्यारा । प्यारा   भारत   देश हमारा ।। राणा,   पन्ना,  भामा,  मीरा । यही  हुए  रसखान,कबीरा ।। चरक,हलायुध,अब्दुल,भाभा । विश्व पटल की … Read more »

श्रृंगारिक दोहे

उसका निखरा रूप था,नागिन सम थे बाल । घायल करती जा रही,चल मतवाली चाल ।। चन्द्र बदन कटि कामनी,अधर एकदम लाल । नयन   कटारी   संग  ले,करने  लगी हलाल ।। जबसे  देखा  है    तुझे,पाया  कहीं  न चैन । प्रेम   रोग    ऐसा लगा,नित बरसत ये नैन ।। प्रीतम  से होगा मिलन,आस  भरे  द… Read more »

Dohe/दोहे

प्रेम हृदय में  धारिये,प्रेम  रत्न  यह  ख़ास । जहाँ प्रेम का वास है,वही  प्रभो  का वास ।। ब्रह्मदेव   के   पुत्र  है,ब्रह्म    बना   आधार । परशुराम सम तेज है,यह ब्राह्मण का सार ।। राजपूत राजा बने,मिला  दिव्य  जब ज्ञान । मैं ब्रह्मा का पुत्र हूँ,अब  तो  मुझको जान ।।… Read more »