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मत्तग्यन्द सवैया : चित्र चिंतन

बैठ प्रिया, तटनी  तट पे, यह सोचत है कब साजन आवे । साँझ ढली रजनीश उगो, विरहा  बन  बैरिन मोय सतावे । सूख रही मन प्रेम लता, यह  पर्वत देख  खड़ो मुसकावे । देर हुई उनको अथवा, कछु और घटो यह कौन बतावे । ✍नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष”     श्रोत्… Read more »

मत्तग्यन्द सवैया छंद (mattgyandy savaiya)

मत्तग्यन्द सवैया छंद (Mattgyandy Savaiya)  (1)  देख गरीब मजाक करो नहि,हाल बनो किस कारण जानो मानुष  दौलत  पास   कितेकहु,दौलत  देख  नही  इतरानो ये तन  मानुष को मिलयो,बस एक यही अब धर्म निभानो नेह सुधा  बरसा  धरती पर,सीख  सिखा  सबको  हरषानो … Read more »

एक सुंदरी : श्रृंगार रस

छंद : मत्तग्यन्द सवैया ------------------------------- जोगिन एक मिली जिसने चित, चैन चुराय  लिया चुप  मेरा । नैन  बसी  वह   नित्य  सतावत, सोमत  जागत डारिहु  घेरा । धाम कहाँ उसका  नहिं  जानत, ग्राम, पुरा, बृज माहिंउ हेरा । कौन  उपाय करूँ  जिससे वह, मित्र  करे  … Read more »

शीर्षक : चिंतन

भोर भयी दिनकर चढ़ आया । दूर हुआ  तम  का अब साया ।। कर्मवीर  तुम अब  तो   जागो । लक्ष्य साध यह आलस त्यागो ।। हार जीत  सब  कर्म  दिलाता । ध्यान  धरे  वह  मंजिल पाता ।। हार कभी न  कर्म  पर  भारी । यह सब कहते नर अरु नारी ।। कर्म  बड़ा  है भाग्य से,लेना  इतना जान । क… Read more »

तांटक छंद : tantak chhand

शीर्षक : मेरा कृष्णा विधा : तांटक छंद ________________________________ पाप बढे जब भी धरती पर,तुमको सभी पुकारे है । रूप लिया गिरधर तब तुमने,आकर कष्ट  उबारे है । कोइ कहे मन मोहन छलिया,काली कमली वारे है । जसुदा   के   लल्ला   मतवारे, मेरे  गिरधर प्यारे है । Read more »

छंद : असंबधा (asambandha chhand)

छंद : असंबधा (asambandha chhand) (1) ---------------------- कान्हा  आओ  प्रेम अगन मन लागी है चाहे    तेरा    दर्शन   अब   अनुरागी  है प्रेमी हूँ तेरा  सुन, तुझ   बिन  मेरा  ना  तारो  प्यारे  मोहन गिरधर हे !  कान्हा (2) ✍नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष” … Read more »

छंद : कुण्डलिया

छन्द : कुण्डलिया ---------------------- अज्ञानी  बिन आपके,ज्यो जल बिन हो मीन । कृपा करो माँ शारदे,विनती    करे     नवीन ।। विनती करे  नवीन,सूझ कब  तुम बिन माता । दो  मेधा  का  दान,मात   मेधा     की   दाता । जग करता गुणगान,मात तुम  आदि भवानी । मिले तुम्हारा  साथ,… Read more »

वसुमति छंद

*वसुमति छंद* [तगण,सगण] ------------------- तू ही जगत में, तू ही भगत में, है वास सब में, हूँ बाद जब मैं, -----------------                -------------------                आधार  तुम  ही,                हो  सार  तुम ही,                ये   पार  तुम ही,      … Read more »

श्रृंगारिक दोहे :

उसका   निखरा रूप   था , नागिन     जैसे     बाल । घायल   करती   जा   रही , चल    मतवाली    चाल ।। चन्द्र बदन कटि कामनी , अधर बिम्ब सम लाल । नयन    कटारी    संग   ले , करने     लगी    हलाल ।। जबसे    देखा    है     तुझे , पाया    कहीं    न   चै… Read more »

घनाक्षरी/ मनहरण कवित छंद

चल     रहे    जिस    पथ , मारग   है नीति   का   वो , आगे अभी बाकी सारा , आपका     ये      जीवन , कोण घडी जाने आवे , संकट   को   लेके साथ , मजबूत     कर    आज , अब     अपना       मन , हार    मत    देख     काम , लगा       रह     अविराम , कर     … Read more »

छंद : मत्तग्यन्द सवैया

छंद : मत्तग्यन्द सवैया ======================= (1) चोर बसे  चहुँ ओर  बसे,पर  नाम  करें  रचना  कर  चोरी । सूरत  से   वह   साधक   है,पहचान  परे नहि  सूरत  भोरी । बात बने लिखते वह तो,मति मारि गयी बिनकीउ निगोरी । कोशिश ते तर जामत है,मति कोउ उन्हें यह दे फिर थ… Read more »

राजस्थानी ढोला और उसकी परदेशी प्रियतमा के बीच का वार्तालाप

_राजस्थानी ढोला और उसकी परदेशी प्रियतमा के बीच का वार्तालाप_ साजन तेरे देश की,है कैसी यह रीत । जित देखूँ में झांक कें,उते मिले बस प्रीत ।। सजनी मरुधर देश ये,है वीरो की खान । आपस में मिल जुल रहें,यहाँ राम रहमान ।। साजन तेरे देश के,अलग थलग क्यों रंग ।… Read more »

छन्द : कुण्डलिया

(1) बजरंगी  बाला  सुनो,अर्ज  हमारी आप । सदा साथ  देना प्रभो,हरना  मन संताप ।। हरना  मन संताप,गीत प्रभु के हम गायें । उर  के मिटे विकार,पाप सारे मिट जायें । बने जहाँ के दीप,करें नित बाद उजाला । अर्ज  करे  उत्कर्ष,सुनो  बजरंगी  बाला ।। (2) चोरी करते … Read more »

दोहा मुक्तक

दोहा मुक्तक ---------------- जय श्री राधे श्याम जी,जय गुरुवर,गुणिधाम । पंचभूत,  गृहदेव    जी,करता   तुम्हे   प्रणाम । भूल   हुई  कोई  अगर,क्षमा  दान  दो   आप । कृपा रखो मुझ दीन पर,करो पूर्ण सब  काम ।।  नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष श्रोत्रिय निवास बयाना Read more »

दैनिक दोहे

राम राम का  राम  है,राम  जगत आधार । राम नाम के जाप से,हो   जाता भव पार ।। राम रमा हर जीव में,राम  नही  बस राम । राम राम अनुपात में,करो राम सम काम ।। नीच  कर्म  करते  अगर,नीचा कुल का नाम । नीच  संग  रहकर  मिले,नीचा  ही  परिणाम ।। उत्तम   संगत   बैठिये,त्यागो  … Read more »

मत्तगयंद सवैया

गागर  लेकर   जाय   रही,जमुना  तट  गूजरि  एक  अकेली । देखत   केशव   पूछ  उठे,कित है सब की सब आज सहेली । गूजरि देख  कहे सुन  लो,सब  जानत  माधव  नाय   पहेली । क्योकर पूछत हो  हमको,तुम  क्योकर  बाद करो अठखेली । : नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष Read more »

कुंडलिनी छंद [kundlini chhand]

छन्द : कुंडलिनी विरह  सतावे  पीव जी,लगी  मिलन  की  प्यास | कद आओगे थे लिखो,बीत     रहा     मधुमास || बीत    रहा    मधुमास,चैन  तुम  बिन नहि आवे | तडपू  पल  छिन  पीव,घणी   ये विरह सतावे || - नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष Read more »

कुंडलियां :

अज्ञानी  बिन आपके,ज्यो जल बिन हो मीन । कृपा करो माँ शारदे,विनती   करे     नवीन ।। विनती करे  नवीन,सूझ कब तुम बिन माता । दो  मेधा  का  दान,मात   मेधा    की   दाता । जग करता गुणगान,मात तुम आदि भवानी । मिले तुम्हारा  साथ,चाहता    यह   अज्ञानी ।। ✍🏻नवीन श्रोत्रिय … Read more »