सा•अनुभा मुंजारे "अनुपमा" जी की कलम से 

हमारे कुञ्ज परिवार के प्रिय  रचनाकार ... नवीन शर्मा ' श्रोत्रिय ' जी पर.....मेरी समीक्षा 

" पूत के पाँव पालने में "
कहावत को चरितार्थ करता हुआ ... नवीन जी का व्यक्तित्व और कृतित्व है । मात्र छब्बीस वर्ष की अल्प आयु में आपकी बहुत आकर्षक उपलब्धियां हैं । साहित्य सृजन करते हुये भी आपको बहुत कम समय हुआ है पर आपको साहित्य की प्रत्येक विधा का ज्ञान है और यही ज्ञान आपकी रचनाओं में श्रेष्ठता लाता है । आज आपने अपनी दो रचनाएँ कुञ्ज के पटल पर समीक्षा के लिये प्रेषित की हैं । आपकी दोनों ही रचनाएँ तारीफ़ के काबिल हैं । आपकी पहली रचना बहुत ही सार्थक और सकारात्मक सन्देश दे रही है । प्रत्येक इंसान को उसके कर्मों के अनूरूप ही फल मिलता है । हम जितने अच्छे कर्म करेंगे हमें ऊपर वाला उतना ही अच्छा फल देगा । इंसान को भाग्य भरोसे न बैठकर कर्मशील होना चाहिये । हमारे किये कर्म ही हमारे जीवन को गति प्रदान करते हैं और हमारी सफलता की मंज़िल तक हमें ले जाते हैं । नवीन जी , आपकी दूसरी रचना पढ़कर आनन्द आ गया आपकी इस रचना में हमारे गौरवशाली राज्य राजस्थान की मिटटी की सौंधी सी महक आ रही है ।

" राजस्थानी ढोला और उसकी विदेशी प्रियतमा " के बीच हुये वार्तालाप को आपने बहुत ही खूबसूरती से शब्दों में व्यक्त किया है । हमारे प्यारे भारत देश की सभ्यता , संस्कृति , भाषा , बोली , रहन _ सहन , खान - पान और व्यवहार से बखूबी आपके ढोला ने अपनी प्रियतमा को परिचित करवाया है । सच में आपकी ये रचना एक उत्कृष्ट रचना की श्रेणी में आती है । आपके यशस्वी जीवन के लिये ... मेरी हार्दिक शुभकामना  साहित्य जगत में एक दिन आपका नाम खूब रौशन हो , यही मेरा आशीर्वाद है आपके साथ

समीक्षक : आपकी  : अनुभा दीदी 
( अनुभा मुंजारे ' अनुपमा ' )
Utkarsh Kavitawali
Writes Review By Anubha Munjare Anupma